Menu
blogid : 10466 postid : 27

मुस्लिम कितने हिन्दू ?? एक नज़र

ghumantu
ghumantu
  • 42 Posts
  • 528 Comments

हम सभी लोग ये जानते है की लगभग आज से १२०० वर्ष पहले मुस्लिमो ने संगठित होकर आर्यावर्त पर हमला करना शुरु किये और इन १२०० वर्षो में उन्होंने भले ही आशातीत सफलता न पाई हो परन्तु वे आर्यावर्त पर काफी हद तक चोट करने में सफल हुए। उन्होंने भारतवर्ष के उन भागो का लगभग पूरी तरह से इस्लामीकरण कर दिया जो पश्चिम में पड़ते थे । और अफगानिस्तान और पाकिस्तान नामक दो देश बनाने में भी सफल हो गए। हलाकि ये सफलता विश्व के अन्य हिस्सों में मिली सफलता से काफी कम है क्योकि इस्लामिक आक्रमणकारी विश्व में जहाँ जहाँ गए उन उन सभ्यताओ को पूर्ण रूप से नष्ट करके एक बर्बर कृत्रिम और थोपी गयी असभ्यता लाद दिए।और करीब ५० देशो की स्थानीय सत्ता का विनाश करके एक तरफ जहाँ अप्रत्यक्च रूप से इस्लाम के नाम पर अरब के सत्ताकेंद्र को सुदृढ़ करने का कार्य किया वही दूसरी तरफ सत्ता को पूर्णकालिक करने हेतु वह के लोगो का बलात सम्प्रदाय परिवर्तन करा दिया।और वह के लोगो को अपना इतिहास भुलाने पर मजबूर कर दिया गया।
अब हम भारत की चर्चा करते है यहाँ पर लोगो को धर्म में अगाध प्रेम होने के कारण सम्प्रदाय परिवर्तन इतना आसान काम न था जिसके कारण आक्रमण दर आक्रमण के बावजूद ये इस्लामी शासक भारत वर्ष में पूर्णरूप से इस्लामीकरण करने में असफल रहे जबकि बहुत ही आश्चर्य की बात है की भारत में अल्लौद्दीन खिलजी के साथ ही से उसके बाद के सभी शासक जो की भारत के ज्यादातर हिस्सों पर शासन किये मुस्लिम ही थे और ये शासन लगातार ५०० सालो तक चलता रहा जहा एक तरफ कई जगहों पर इन इस्लामिक आक्रमंकरियो को वह की स्थानीय सभ्यता नष्ट करने में मुस्किल से १०-२० साल लगे वही पर भारत में ये लगातार ५ शती तक राज़ करने के बावजूद ऐसा करने में असफल सिद्ध हुए।कभी महाराणा प्रताप के रूप में तो कभी सिख समाज के रूप में तो कभी शिवा जी महाराज के रूप में इनको लगातार कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और शिवा जी महाराज के समय तो मराठा इन मुस्लिम आक्रमणकारियों पर कई बार भरी भी नज़र आये।
परन्तु इन मुस्लिमो ने एक काम बहुत ही चालाकी से कर दिया वो था यहाँ के मजबूर हिन्दुओ को मुस्लिम सम्प्रदाय में बदलना। इनके लिए सम्प्रदाय परिवर्तन के लिए जो सबसे आसन शिकार नज़र आये वो विभिन्न कारणों से असहाय लोग थे…..
१..वे गरीब बन्धु जो मुस्लिम शासको द्वारा लगाये गए जजिया कर को देने में असमर्थ थे और भुखमरी से बचने के लिए मुस्लिम बन गए
२..वे हिन्दू परिवार जिनके पुरुष इनसे युद्ध के दौरान मार दिए गए तो कुरआन के अनुसार ये खुद ब खुद अल्लाह द्वारा दी गयी उपहार के समान हो गए जिसके अनुसार काफिरों को मारकर उनकी बीबी को अपनी रखैल बनाना चाहिए और उनके बच्चो को गुलाम अतः ये मजबूर परिवार भी मुस्लिम बने
३..वे जातिया जो उस समय समाज में उच्च वर्ग में आती थी उनसे असोभानीय कार्य कराना जैसे की बाल्मीकि समाज के लोगो को मैला उठाने का काम देना
४..वे लोग जो अपनी अकर्मण्यता से समाज में दब गए थे और बेहद स्वार्थी होने की वजह से केवल नाम बदलकर तत्कालीन समाज में अपना दर्जा ऊपर कराना चाहते थे
५..वे लोग जो जातीय असुद्धता के वजह से मज़बूरी में मुस्लिम धर्म अपना लिए उदाहरण के लिए यदि कोई मुस्लिम किसी हिन्दू महिला के साथ जोर जबरदस्ती से सम्बन्ध बना लेता था तो उस महिला का मन न होते हुए भी मुस्लिम बने रहना पड़ता था क्योकि हिन्दू परिवार उसे अस्वीकार कर देते थे
इस तरह हम देखते है की ज्यादातर लोग विभिन्न मजबूरियों के कारण मुस्लिम सम्प्रदाय में चले गए परन्तु भारत की आत्मा जो की स्थायी है और यहाँ के लोगो के साथ जन्म जन्मान्तर से जुडी है और जुडी रहेगी वो आज भी इन बदले हुए मुस्लिमो में विभिन्न रूपों में विद्यमान है हलाकि ज्यादातर मुस्लिम इन बातो से इनकार करते है परन्तु आर्य प्रभाग के मुस्लिमो में तमाम ऐसी बाते पाई जाती है जो की इन्हें केवल मुस्लिम कहने के बजाय हिन्दू ‘मुस्लिम’ कहने पर मजबूर करती है ।
हम इन बातो पर बारी बारी से गौर करते है ।
१…जाति व्यवस्था- जाति व्यवस्था पुरे विश्व में हिन्दुओ के एक विशिष्ट पहचान के रूप में देखा जाता है परन्तु हम देखते है की भारत वर्ष के मुस्लिमो में आज भी विभिन्न जातिया पाई जाती है जैसे की पठान ,अंसारी, हज्जाम , कसाई, धोबी,मालिक, चौधरी,पटेल इत्यादि इत्यादि और उससे बड़ी बात ये है की ये समस्त जातिया विवाह के दौरान उसी तरह जाति व्यवस्था का पूर्ण पालन करती है जैसे की हिन्दू पालन करते है जबकि कुरआन या हदीश में इस तरह के जाति व्यवस्था का पूर्ण विरोध है अब तो भारत में दलित मुसलमानों का एक पूरा संघठन बन चूका है है जिसे पसमांदा समाज भी कहा जाता है। इस तरह से हम देख रहे है की यह व्यवस्था पूर्ण रूप से हिंदुत्व से प्रेरित है ।
२…देव पूजा – हम लोग जब भी कभी अपने गाव जाते है तो अक्सर देखते है की मरे हुए पुजारियों की याद में अक्सर एक शंकुनुमा(cone shape ) संरचना बना दी जाती है जिसे ब्रह्म कहते है और खासकर उत्तर प्रदेश बिहार मध्यप्रदेश आदि जगहों पर लोग उन्हें बरम बाबा के नाम से संबोधित करते है बिलकुल उसी तरह भारत वर्ष में रहने वाले मुस्लिम अपने मरे हुए संतो की याद में मज़ार की स्थापना करते है संरचना भी लगभग एक जैसी होती है यह शंकु को खड़ा रखने के बजाय लेटाने पर जो रचना बनती है उससे मिलती है।और गौर करने वाली बात ये भी है की जिस तरह से साल भर में एक बार ब्रह्म की पूजा होती है उसी तरह इन मजारो पर साल भर में एक बार उर्स मनाया जाता है । जबकि कुरआन के अनुसार केवल और केवल अल्लाह की पूजा करनी चाहिए और अरब सहित अन्य सभी इस्लामिक देशो में मज़ार पूजा पर रोक है लेकिन भारत वर्ष के मुस्लिमो की जीतनी श्रद्धा मजारो पर है उतनी मस्जिदों पर नहीं है अतः यह व्यवस्था भी पूर्ण रूप से हिंदुत्व से प्रेरित है ।
३..संन्यास आश्रम- हम सभी जानते है की संन्यास की व्यवस्था हिन्दू धर्म में है परन्तु इस्लाम जो अपनी आबादी बढ़ाने पर पूरा जोर देता है उसमे कही भी संन्यास की व्यवस्था नहीं है या युं कहे की ब्रह्मचर्य की कोई व्यवस्था नहीं है पर हम देखते है की पहले भी और आज भी तमाम मुस्लिम सूफी संत आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपना संपूर्ण जीवन बिता दिए जबकि कुरआन या हदीश के काम क्रोध लोभ और मोह से भरे हुए विचारधारा में ऐसी सुद्ध बातो के लिए कोई जगह नहीं है इस तरह से हम देखते है की तमाम सूफी संत जो संन्यास ग्रहण करते है वो कही न कही हिंदुत्व से ही प्रेरित है ।
४..संगीत.. भारत वर्ष के सनातन पूजा पद्धति में भजन का बहुत ज्यादा महत्व होता है भजन वास्तव में इश्वर के प्रति उत्पन्न भावो का संगीत मय प्रस्तुतीकरण होता है परन्तु हम सभी जानते है की इस्लाम में संगीत की पूर्णरूप से मनाही है परन्तु हम देखते है की आर्य प्रभाग के मुसलमान कौवाली नामक विधा के द्वारा अल्लाह को खुश करने के लिए प्रार्थना करते है और बेहद आश्चर्य की बात है की संगीत के जितने उस्ताद इस मुस्लिम है उतने हिन्दू नहीं है चाहे वो नुसरत फ़तेह अली खान रहे हो या रियाज अली हो या साइन जहूर हो या फिर रेशमा हो ये सभी शास्त्रीय और लोक संगीत का माना जाना नाम हैं ।
इस तरह से हम देखते है की समय की मार के बावजूद जो हिंदुत्व की अमर आत्मा है वो आज भी हिन्दू’मुस्लिमो’ के अन्दर मौजूद दिखाई देता है परन्तु गलत और घटिया इतिहास पढ़ाने की वजह से वो आज अपने ही पूर्वजो को भूलकर उन्ही को मारने काटने पर उतारू दिखाई दे रहे है जिस सम्प्रदाय ने उनके बाप दादाओ पर तमाम तरह के अत्याचार किये आज उसी असभ्यता का गुणगान करते हुए नहीं थकते इसलिए जरुरत है की हम अपने देश के कालेजो में मदरसों में स्कुलो में सही इतिहास पढाये जो की बच्चो को सच्चाई से अवगत कराये और वो एक सही निर्णय लेने में सफल सिद्ध हो सके और देश की एकता और अखंडता को मजबूत बनाया जा सके ।
आपका अपना
डॉ. भूपेंद्र

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply