Menu
blogid : 10466 postid : 40

कम्यूनिस्टो का दोगलापन

ghumantu
ghumantu
  • 42 Posts
  • 528 Comments

हम अक्सर देखते है की कम्युनिस्ट खूब आदर्शवादी बाते करते है. और प्रायः उनकी बाते सुनाने में बेहद अच्छी लगाती है . लेकिन मैंने व्यक्तिगत रूप से ये पाया है की यदि सबसे ज्यादा दोगली बाते कोई करता है तो वो कम्युनिस्ट ही है . मै अपनी बाते कुछ उदाहरण से संझाना चाहूँगा .
ये कहते है की ये जब सत्ता में आयेंगे तो ये सुशासन ला देंगे परन्तु ये जब भी सत्ता में आते है ये दो चार महीने तो कम्युनिस्ट रहते है पर फिर न जाने क्यों अपने विचारो से पलट जाते है . जब ये रूस में सत्ता में आये तो इनका दावा था की ये उसे आबाद कर देंगे पर रूस को बर्बादी के शिवा कुछ नहीं मिला . ये जब चीन में आये तो ये कुछ साल तक तो खुद को कम्युनिस्ट नीति रीति से चलाये पर बाद में इनका मन भर गया और फिर से पूंजीवादी व्यवस्था की तरफ भाग गए . यदि भारत की बात करे तो इन्होने पश्चिम बंगाल जैसे धन धान्य पूर्ण प्रदेश को बर्बादी के कगार पर ला खड़ा किया और इन कम्यूनिस्टो को जब ये सब उदहारण दिए जाते है तो ये तुरंत कहते है की ये सब असली वाले कम्युनिस्ट नहीं है . इसका क्या मतलब है ? जब तक स्थानीय शासन के खिलाफ लड़ना है तब तक असली कम्युनिस्ट पर जैसे ही सत्ता मिल जाती है नकली हो जाते है . ताज़ा घटनाक्रम हमे नेपाल का याद आ रहा है जब तक नेपाल में राजा के खिलाफ आन्दोलन चलाना था तब तक भारत समेत विश्व के तमाम मुर्ख प्रकार के तथाकथित बुद्धजीवी कह रहे थे की नेपाल का भाग्योदय हो रहा है पर हम देख सकते है की ये दोगले कम्युनिस्ट किस तरह से कभी मद्धेसियाओ का वोट खरीद रहे है तो कभी वहा के संविधान को अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ रहे है .. अब एक बार फिर कम्यूनिस्टो ने ये कहना शुरू कर दिया है की ये असली कम्युनिस्ट नहीं है .. भगवान् जाने की असली कम्युनिस्ट कब इस धरती पर प्रकट होंगे …
कम्यूनिस्टो का कहना होता है की इनकी सोच बेहद वैज्ञानिक होती है परन्तु इनके अनुसार सबको बराबर खाना मिलाना चाहिए सबको बराबर पैसा मिलाना चाहिए सबको बराबर ज़मीं मिलनी चाहिए पर इनसे ये कौन पूछेगा की जब दो आदमी की कार्यशक्ति एक नहीं हो सकती तो ये सब बराबर कैसे मिल सकता है ये जहा नैतिकता के आधार पर भी गलत है क्योकि काहिल और मेहनती व्यक्ति जब दोनों को एक जैसा ही सम्मान देंगे तो ये तो मेहनती व्यक्ति को असम्मान जैसा है और दूसरी तरफ यदि हम विज्ञानं में डार्विन के सिद्धांत की बात करे तो उसके हिसाब से भी गलत होगा जिसके अनुसार योग्यतम की उत्तरजीविता ( survival of fittest ) बताया गया है . यदि सब कुछ कम्यूनिस्टो के हिसाब से बराबर बराबर का हिसाब कर दिया जायेगा तो मेहनती व्यक्ति भी काहिल और कामचोर हो जायेगा..
हम देखते है की कम्युनिस्ट अपने आप को बेहद सेक्युलर दिखाते है उनके अनुसार सम्प्रदाय एक अफीम है परन्तु हम अक्सर देखते है की इनकी नज़र में न जाने क्यों केवल हिन्दुत्व ही अफीम है जबकि मुसलमानों में कोई अफीम नहीं दिखाई देती शायद तभी ये हिन्दुओ में होने वाले सभी कार्यो को पाखंड बताकर उसका विरोध करते है परन्तु जब मुस्लिमो के तमाम संकीर्ण कार्यो के विरोध की बात आती है तो ये कहने लगते है की वो तो बेचारे अल्पसंख्यक है उनको तो धार्मिक स्वतंत्रता मिलनी चाहिए वो जिस भी तरह से अपने रीति रिवाज़ को कायम करते है वो ठीक है..
कम्यूनिस्टो का कहना है की भगवान् जैसा कुछ भी नहीं होता परन्तु जब हम भौतिकी का ध्यान से अध्ययन करते है तो पाते है की एर्विन श्रोडिन्गर से लेकर आइन्स्टीन तक हैजेनबर्ग से लेकर दी ब्रोग्ली तक इश्वर के प्रश्न पर अनुत्तरीत है पर कम्यूनिस्टो ने न जाने किस गुप्त खोज के बल पर ये कहना शुरू कर दिया की भगवान् नहीं है… एर्विन श्रोडिन्गर को तो अपने पुस्तक what is life में negentropy का सिद्धांत देते हुए यह मानने पर मजबूर होना पड़ा की कुछ विशेष शक्ति जैव जगत को चला रही है और इसी पुस्तक को आधार बनाकर डीएनए की खोज भी की गयी.. पर लगता है की कम्यूनिस्टो की विज्ञान की दुनिया अलग है..
कम्यूनिस्टो का कहना है की ये अपना शासन लाकर के शांति फैला देंगे परन्तु जहाँ जहाँ इनका शासन है या वर्चस्व है वहा पर केवल और केवल खून खराबा ही होता है ये आज भारत के लगभग २५० जिलो में आज हावी है और हर साल हजारो लोगो की जान लेते है और कहते है की इनका युद्ध बड़े बड़े पूंजीपतियों के खिलाफ है परन्तु मैंने आज तक नहीं सुना की इन्होने किसी बड़े पूंजीपति या नेता की हत्या की हो परन्तु ये हमेशा छोटे स्तर के गरीब कर्मचारियों, सी ग्रेड के सिपाहियों , आम जनता को मारते है और एक घटिया तर्क भी दे जाते है की जैसे जमींदारो के लठैतो को मारना जरुरी होता है वैसे इन कर्मचारियों और सिपाहियों को भी मारना जरुरी है जबकि ये स्वीकार नहीं कर पाते की इनकी इतनी हिम्मत नहीं है की ये इन बड़े लोगो के खिलाफ अपना मुह खोल पाए ..और कई बार ये देखा गया है की ये जिन नेताओं को बैठकर गाली देते है उनके साथ इनके अंदरूनी सम्बन्ध होते है..
कम्युनिस्ट महिलाओ के अधिकारों को लेकर काफी लड़ते है पर जब माओवादी नक्सलियों द्वारा एक घर से रोटी दुसरे घर से बेटी जैसे मांग की जाती है तो ये दोगले इनके ख़िलाफ़ बोलने से मन कर देते है . मुझे याद आता है की एक वर्ष पहले भारत की प्रथम दर्जे की महिला नक्सली कमांडर ने यह आरोप लगाकर आन्दोलन से अलग हो लिया था की नक्सली नेताओ द्वारा उसका कई साल तक शोसन किया गया… times of india ने इस समाचार को उस समय बहुत प्रमुखता से प्रकाशित किया था परन्तु किसी कम्युनिस्ट ने इसका विरोध नहीं किया जब इतने उचे स्तर के महिला अधिकारी का ये हश्र हुआ तो निचले स्तर पर संघठन में महिलाओ का क्या हाल होगा ये आसानी से समझा जा सकता है…
मुझे लगता है की कम्यूनिस्टो की पहचान ही यही है की बाते तो खूब ऊची ऊची करो ताकि लोग आदर्श मान ले और लोग समर्थन दे दे परन्तु जैसे ही इस समर्थन से सत्ता हासिल हो जाये समाज को लूट लो .. फिर दुनिया में बचे खुचे मुर्ख बुद्धजीवी फिर कहेंगे की ये असली वाले कम्युनिस्ट थोड़े है असली वाले तो हम है..
डॉ. भूपेंद्र
६/०६/२०१२

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply