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मन्नू प्रधान की बकलोल से वार्ता के कुछ अंश- व्यंग

ghumantu
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baklol मन्नू प्रधान आजकल गूंगा बनके बैठे है ,बहुत कोसिस के बाद कुछ उनसे सुनाने को मिलता है ,ऐसा हो भी क्यों न वो शायर जो ठहरे शायर सोचते ज्यादा और बोलते कम ही है . आज कल शायरी कर रहे हैं मीडिया में लेकिन बकलोल तो बकलोल ही हैं वो सारी बाते मन्नू प्रधान से पूछ लेता है . पेश है उसकी बातचीत के कुछ अंश ….
संवाद -१
बकलोल -मन्नू भाई ,मन्नू भाई..
मन्नू भाई- का है बे..?.
बकलोल – थोड़ा उल्टी करो न …
मन्नू भाई- काहे बे..?
बकलोल – अम्मा बोलिश है की गैस ख़तम होई गवा है.., लेकिन अभी खाना नहीं बन पाया है
मन्नू भाई – तो का हमारी उल्टी खाओगे ..??
बकलोल -नहीं उ का है की आप इतना कोयला खाए है अभी सारा पचा थोड़े होइगा …. ओका देई दो तो आज रसोई जल जाय..
(एक बार प्रेम से बोलो बकलोल बाबा की जय)
संवाद-२
बकलोल- मन्नू भाई … मन्नू भाई
मन्नू भाई- क्या है बे??
बकलोल – आप परधान किस जुगाड़ से बन गए ?
मन्नू भाई-……………………………….(चुप)
बकलोल-मन्नू भाई प्लीज़ बताइये न…
मन्नू भाई- …………………………………………………….(एक लम्बी चुप्पी)
बकलोल – प्लीज़ बताओ ना, बच्चे की रिक्वेस्ट है मान भी जाओ….
मन्नू भाई……………………………(फिर बकलोल को एक कंटाप मारिस)… (फिर चुप)
बकलोल- बस गुरुदेव ,बस ,समझ गए…..
( एक बार प्रेम से बोलो बकलोल बाबा की जय.)
(जिनको जिनको समझ में आया हो टिपण्णी करे , बाकी जाके लूडो खेले)
संवाद-३
बकलोल- मन्नू भाई कुछ तो बोलो .
मन्नू भाई-ओ ओ ओ ओ ………
बकलोल- का कह रहे हो ,साफ़ साफ़ बोलो.
मन्नू भाई-ओ ओ ओ ओ …..
बकलोल-(सर खुजाते हुए) एका बोली काहे नहीं निकल रहा है…ससुरा
(तब तक मन्नू भाई ने काले रंग की उलटी कर दी और बकलोल को एक कंटाप जड़े)
मन्नू भाई-ससुरे मुह में कोयला भरा है ,तुमको समझ में नहीं आय रहा है…???
बकलोल-(गाल सहलाते हुए)… तबे लोग कह रहे थे की ई ससुरा घाख है , कौनो चिन्तक विचारक नहीं..
(एक बार प्रेम से बोलो बकलोल बाबा की जय)
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यदि आप ब्लॉगर मित्रो को यह श्रंखला पसंद आया हो तो अवश्य बताये , ताकि मै आगे से इसे अपने ब्लॉग पर भी लगातार लिखू वरना फेसबुक तक अपनी हद निर्धारित कर लू… और इसे यहाँ पर पोस्ट न करूँ……
हार्दिक धन्यवाद
आप लोगो के राय के इंतज़ार में– डॉ. भूपेंद्र
२७ /०८/२०१२

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