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आत्मा से देह तक – भारतीय नारी विकासक्रम (भाग-१)

ghumantu
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nareeमित्रो भारतवर्ष में नारी को सदैव एक विशिस्ट स्थान मिलता रहा है , पर धीरे धीरे विभिन्न विदेशी सभ्यताओं के आक्रमण ने हमारी संस्कृति को इस तरह दूषित किया की नारी, समाज में अत्यंत पीछे होती चली गयी. हमारे यहाँ नर ,नारी को एक मानने की सदैव से परंपरा रही पर धीरे धीरे जैसे जैसे विदेशी आक्रमण होते रहे उसकी वजह से कभी सामाजिक मजबूरियों के कारण तो कभी विदेशी असभ्यता के मिलन के कारण नारी को समाज के अंतिम स्थान पर भेज दिया गया.
विश्व में कुछ ऐसे सम्प्रदाय विकसित हुए जिन्होनो नारी के तन पर कपड़े लादते जाने को ही नारी का विकास समझा , तो वही कुछ ऐसे धर्म बने जिन्होंने नारी के तन से कपड़े उतारने में ही उनका विकास समझा , पर इनके आत्मीय विकास का ध्यान इन दोनों आक्रमणकारी संस्कृतियों में नाम मात्र का भी नहीं था , होता भी कैसे?? जब इन्होने ये कह दिया की नारी में आत्मा नहीं होती है , और जब नारी में आत्मा नहीं तो वो इनके लिए बची क्या ?? निरा देह… तो इनकी सारी चर्चा या तो इस देह के उपयोग, उपभोग ,आनंद में बीत गयी या फिर इसके देह को दूषित होने से बचाने में बीत गयी क्योकि इनकी निगाहों में दूषित देह उतना आनंद नहीं देता जितना अदुषित देह देता है.
वही अरब की रुखी सुखी धरती पर जन्मे संस्कृति ने स्त्री को इस कदर आनंद की वस्तु माना की की मरने के बाद स्वर्ग में भी उसके देह को उपभोग करने की आज़ादी प्रदान की , कहने का मतलब धरती तो धरती , स्वर्ग में भी इनको नहीं बख्शा गया.
इन घातक और संक्रामक संस्कृतियों ने हमे इस कदर संक्रमित किया की , आज हमारे देश की राजधानी को ”रेप सिटी ऑफ़ द वर्ल्ड ” के नाम से नवाज दिया गया. बच्चियों को उनके मांओ कोख में मार दिया जा रहा है. उनको अपने झूठे प्रेम जाल में फसाकर उनके शरीर का शोषण करना तथाकथित पढ़े लिखे नौजवानों का मुख्य कार्य बनता जा रहा है , कोई भी विज्ञापन उनके शरीर से बिना कपड़े पूरी तरह से हटाये पूरा नहीं हो पा रहा है , अपने आफिस में सुन्दर लडकियों को रखना स्टेटस बन गया.
प्राचीन ज्ञात इतिहास काल से लेकर अब तक भारत में मौलिक रूप से औरतो की क्या स्थिति रही है , इस पर विभिन्न विद्वानों ने अच्छा कार्य किया है ,पर हिंदी में ऐसी बहुत कम पुस्तके है जिसको पढ़कर हमें यह ज्ञात हो भारतवर्ष के इतिहास में हर काल में औरतो की क्या स्थिति रही, क्योकि अलग अलग कालखंडो में विभिन्न लोगो ने खूब लिखा है पर सभी कालखंडो पर किसी ने एक साथ काम किया हो ऐसा कम ही देखने को मिला है , इस मामले में आंग्ल भाषा में लिखित पुस्तक ” women in Asia ” ने काफी अच्छा कार्य किया है, पर उसमे भी भारत का इतिहाश ईसा के कुछ सौ साल पहले से ही लिया गया है , परन्तु भारतीय इतिहाश तो बहुत पुराना है , हालाकि भारतीय इतिहास का कालक्रम पाश्चात्य लेखको और देशी कम्यूनिस्टो के गले नहीं उतरता है, जिसमे इसके इतिहास को पचासों हज़ार वर्ष पुराना बताया गया है पर इन लेखको के अनुसार लगभग १०००० वर्ष पहले तो सभ्यताए शुरू ही हुई और इनको विकसित होने में चार पांच हज़ार साल लग गए , पर अब प्राप्त नए शोधो में सबकी सोच बदली है , टर्की के दच्छिन पूर्व हिस्से में ”गोब्क्ले तेपे” नामक स्थान पर साढ़े नौ हज़ार साल पुरानी पूर्ण विकसित सभ्यता मिलना इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा ऐसा मेरा मानना है.
नारी विकास क्रम को पाठको और मैं खुद अपनी सुविधा के लिए दो हिस्सों में बाट रहा हूँ .. पहले हिस्से को निम्न काल खंड में बाट कर मै विषय रख रहा हूँ…. मित्रो विषय लम्बा भी है और उबाऊ भी पर मै आप लोगो को सारांश के रूप में प्रस्तुत करके इसको पढ़ने योग्य बनाने की कोशिस की है बेवजह के दुरुहता से बचा गया है..
१- महाराजा मनु का समय काल – ईशा से २०००० वर्ष पूर्व
२- वैदिक काल – ईशा से १०००० वर्ष पूर्व से लेकर ५००० वर्ष पूर्व तक
(मित्रो हालाकि उत्तर वैदिक कल अगले कई सौ सालो तक विद्यमान रहा पर वह महाभारत कल के रूप में अलग से प्रस्तुत करूँगा, और रामायण काल भी वैदिक काल के लगभग बिच में आता है पर उसे भी सुविधा के अनुसार अलग से देखेंगे)
३- रामायण काल – ईशा से ७००० वर्ष पूर्व
४- हड़प्पा ,मोहेंजोदड़ो काल – ईशा से ५००० वर्ष पुर्व

१ – महाराजा मनु का समयकाल
महाराजा मनु का समयकाल आज से लगभग २२००० वर्ष पूर्व का माना जाता है जब भारत के समुद्री हिस्से में प्राकृतिक परिवर्तनों की वज़ह से अचानक भीषण बाढ़ आ गयी ,तब महाराजा मनु के साथ उस समय पूरी सभ्यता का भारतीय समुद्री हिस्से से उत्तर भाग में आगमन हुआ, उस समय काल को समझने के लिए महाराजा मनु द्वारा लिखी पुस्तक मनुस्मृति को ध्यान में रखना अनिवार्य है , हालाकि यह पुस्तक सदैव से विवादों में रही है पर फिर भी यह धर्म के मामले में कानून की तरह है , इस पुस्तक के माध्यम से मै आप लोगो को उस कालखंड में औरतो की स्थिति के बारे में बताना उचित समझता हूँ.

क- स्त्री घर की भाग्य है — १- महिलाए पूजा के योग्य है , वे परिवार की भाग्य हैं, वे घर को प्रकाशित करने वाली दीपक हैं,वे परिवार को राहत लाने वाली एवं धार्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है ,यहाँ तक की स्वर्ग भी महिलाओं के नियंत्रण में होता है , उन परिवारों में जहाँ नारी की पूजा होती है वह देवताओं का वास होता है, वे घर जहा महिलाओं को महत्व नहीं मिलाता है वह सुधार के सरे प्रयास व्यर्थ हो जाते है . (मनुस्मृति अध्याय ३-५६)
२- महिलाए प्रसव के माध्यम से घर का भाग्योदय कराती हैं , वे सम्मान और श्रद्धा की पात्र है ,वे जब तक घर में रहती है घर चमकता रहता है वास्तव में लक्ष्मी और महिलाओ में कोई अंतर है ही नहीं ..(मनुस्मृति अध्याय १-२६)

ख- स्त्री को पैत्रिक संपत्ति में अधिकार और उसकी सुरक्च्चा — १- प्रकृति के निर्माण के साथ ही स्वयंभू महाराज मनु ने स्पष्ट आदेश दिया की ”पैत्रिक संपत्ति में बेटे और बेटी दोनों का समान अधिकार होगा ” (निरुक्त ३-१-४)
२- बेटी हर मामले में बेटे के बराबर है, उसे कमतर नहीं आंक सकते (मनुस्मृति अध्याय ९-१३० )
३- महाराजा मनु यह जानते थे की पुरुष स्त्री को कमजोर आंक कर उसके संपत्ति पर जबरदस्ती कब्जा ज़मा सकते है ,अतः उन्होंने ऐसे लालची लोगो के लिए नियम बनाए . किसी भी महिला को कमजोर समझकर यदि कोई व्यक्ति उसकी संपत्ति को हड़पना चाहता है तो भले ही वह पुरुष उस महिला का कितना भी निकटतम सम्बन्धी क्यों न हो उसको वही सज़ा मिलेगी जो की एक चोर को मिलती है (मनुस्मृति ,अध्याय९-२१२ , अध्याय ३-५२ , अध्याय ८- २,२९)

ग – विवाह और स्त्री —- १- महिलाओ को यथोचित वर चुनने की सलाह देते हुए महाराज मनु कहते है ”दुष्ट और शातिर आदमी से महिलाओं को बचकर रहना चाहिए , भले ही अविवाहित होकर स्त्री जीवन काट ले पर ऐसे व्यक्ति के साथ विवाह करके सम्पूर्ण जीवन नरक बनाना उचित नही” (मनुस्मृति अध्याय ९- ८९)
२- घर में पति और पत्नी को खुश और संतुष्ट रहने के लिए एक दुसरे के खिलाफ ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए ,जिससे दोनों में किसी तरह का भेद हो (मनुस्मृति अध्याय ९ -१०१,१०२ )
३- नव विवाहित दुल्हन ,कुवारे बेटी ,गर्भवती स्त्री , और वृद्ध महिला को पहले भोजन प्रदान करना चाहिए ,और अंत में पुरे परिवार को भोजन कराकर पति पत्नी दोनों को एक साथ बैठकर अकेले में एक दुसरे को समय देकर भोजन करना चाहिए.
ये कुछ श्लोको का अर्थ मैंने यहाँ पर आप लोगो के सामने प्रस्तुत किया जिसको पढ़कर आप लोगो को महाराज मनु की औरतो के प्रति सोच पता चली होगी वही दूसरी तरफ मनु स्मृति के विरोधी निम्न लिखित श्लोको का प्रसंग देकर उनको आरोपित करते है ..
अध्याय २ श्लोक संख्या २१३,२१४, २१५
अध्याय ३ श्लोक संख्या ८,९,१०,११,१२,१४,१५ ,१७,१८
अध्याय ४ श्लोक संख्या ४३ ,४४
अध्याय ५ श्लोक संख्या १५०,१५१,१५८,१६०,१६७
अध्याय ९ श्लोक संख्या ३,६,८,१४,१५,१८,५८,६०,७०,७७,८०,९३
इन श्लोको को पढ़कर वास्तव में लगता है की महाराजा मनु घोर नारी विरोधी थे , पर ध्यान देने वाली बात है की ऊपर लिखे श्लोको में मनु ने नारी की जमकर प्रशंशा की है जबकि निचे दिए गए श्लोको में जमकर गाली दी गयी है , इसका दो ही कारण हो सकता है की या तो महाराज मनु रह रह कर पागल हो जाते थे और अंट शंट लिखने लगते थे या फिर बाद में उनके मूल लेखनी से छेड़ छाड़ की गयी है , पहले की संभावना तो नगण्य ही है , अतः दुसरे संभावना पर ही विचार करना चाहिए. और इस संदेह की पुष्टि इस बात से होती है की बाद के ये श्लोक जान बुझकर जगह जगह ठूस दिए गए है क्योकि ये जगह जगह बिना प्रशंग के आ जाते है और जहाँ आते है पुरे गुच्छे में ही आते है. नए शोधो के अनुसार २६८५ श्लोको में से १४७० ही मूल रूप से महाराज मनु द्वारा लिखे गए है बाकी को बाद में पुरुष प्रधानता को बढाने के लिए अन्य लोगो द्वारा जोड़ दिया गया.
इस तरह से हम देखते है की महाराजा मनु के समय स्त्रीयों को न केवल समानता का अधिकार था , बल्कि उन्हें नियम बनाकर प्राथमिकता भी दी गयी थी..

२- वैदिक काल
वैदिक काल का समय १०००० वर्ष ईशा पूर्व से लेकर ५००० वर्ष ईशा पूर्व तक माना गया है . हालाकि की कुछ बंधू जो की यह पढ़े है की उत्तर वैदिक काल तो महाभारत काल के समय था , उनको मै स्पष्ट कर दूँ की मैंने महाभारत काल को अध्ययन की सुविधा के कारण अलग बाट दिया है , और रामायण काल जो की लगभग ७००० ईशा पूर्व का है वो हालाकि वैदिक काल के अन्दर ही समाहित हो जाता है पर उसके कुछ विवादित मुद्दों को मैं यहाँ अलग से चर्चा में रखूँगा ,जिसमे रामायण के साथ ही साथ रामचरित मानस की भी चर्चा करूँगा. जिन मित्रो को ये शंका है की रामायण काल वैदिक काल का हिस्सा नहीं है वो गार्गी – याज्ञवल्क्य संवाद एक बार ध्यान कर लेंगे जो की सिद्ध करता है की वैदिक काल के बीच में ही कही रामायण काल आता है क्योकि गार्गी वेद की जानी पहचानी नाम है वही वह महाराजा जनक के नवरत्नों में भी शामिल है .
वैदिक काल स्त्रीयों के लिए न केवल आज़ादी से भरा माना जाएगा ,बल्कि इस काल में उनके अन्दर छिपे हुए सर्जनात्मक गुण भी वेदों में श्लोको के माध्यम से नज़र आये .. वैदिक काल में कई सारी विद्वान् स्त्रीया हुई जिनमे से चार के नाम प्रमुख है जिनकी चर्चा किये बिना वैदिक काल में स्त्रीयों की दशा को प्रकट करना पूर्ण रूप से अधूरा माना जाएगा
१- घोषा — यह वेद में वर्णित २७ ब्रह्म वादिनियो में से एक है , जिसका की स्पष्ट सबूत मिलता है , बाकी का सबूत विद्वानों ने अब तक नहीं खोजा है ,यह दिर्घतामस की पोती थी , इसे कुष्ट की बीमारी हो गयी थी , अतः यह अपने पिता के ही घर पर रहती थी , और वेद के रिचाओ को लिखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया , इसने ऋग्वेद के पुस्तक संख्या १० के पुरे दो अध्याय को लिखा जिनमे प्रत्येक में १४-१४ श्लोक है . इसमे इसने उस समय के विश्वप्रसिद्ध जुड़वा चिकित्सक भाइयो की प्रार्थना की है ,जिसमे उसने अश्विनी कुमारो से आग्रह किया है की वह कुष्ट के कारण अविवाहित अपने पिता के घर पर पड़ी हुई है अतः कुमार बंधू उसका इलाज़ करे , उसके प्रार्थना को ध्यान रख कर अश्विनी कुमार उसे पूर्णतया कुष्ट से मुक्त कर देते है , जिससे उसकी शादी हो जाती है और खुशहाल जीवन जीने लगती है .
२- लोपमुद्रा — यह अगस्त्य मुनि की पत्नी थी , इसको खुद अगस्त्य मुनि ने बनाया था और फिर विदर्भ के राजा को सौप दिया , राजा ने लोपमुद्रा को उस समय उपस्थित सभी ज्ञान विज्ञान का अध्ययन करवाया, और अध्ययन करते हुए वह जब शादी के उम्र की हो गयी तो विदर्भ के राजा ने पुनः उसको अगस्त्य मुनि को शादी कराकर उसे लौटा दिया हालाकि अगस्त्य मुनि बेहद गरीबी में जीवन गुजार रहे थे पर लोपमुद्रा ने राज़ महल का त्याग कर जंगल में उनके साथ कठिन जीवन व्यतीत करने लगी ,एक लम्बे समय तक बिना किसी तरह के शिकायत के वह अपने पति की सेवा कराती रही पर धीरे धीरे वह ऋषि के लम्बे लम्बे तपस्याओ से परेशान हो गयी फिर उसने अपने पति को समझाने के लिया वेद में २ पदों की रचना की ,जिसमे उसने ऋषि से उनके भौतिक जीवन के कर्तव्यों को पूर्ण करने की भावपूर्ण विनती करती है , उसे पढ़ने के बाद ऋषि का दिमाग खुल गया और वो आध्यात्मिक जीवन के साथ साथ भौतिक जीवन में भी पूर्णता को प्राप्त हो गए , और एक सुखमय जीवन जीने लगे ,इन दोनों से एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम द्रिधास्यु रखा जो की आगे चलकर एक महान कवि बना .
३- मैत्रेयी — मैत्रेयी ,याज्ञवल्क्य की पत्नी थी , वह बेहद बुद्धिमान महिला थी ,उसके महान दार्शनिक विचारों ने याज्ञवल्क्य के चरित्र निर्माण और दर्शन पर गहरा असर डाला , याज्ञवल्क्य की दो पत्निया थी कात्यायनी और मैत्रेयी. जब ऋषि ने अपने धन को दोनों पत्नियों में बाटना चाहा तो मैत्रेयी ने यह प्रश्न किया की क्या ये धन दौलत ,रूपया पैसा व्यक्ति को अमरता दिला सकते है , फिर इस पर उसका अपने ऋषि पति के साथ एक लंबा चर्चा होता है . ब्रिहदारान्याका उपनिषद् में दोनों की बाते प्रस्तुत की गयी है . आत्मा के सिद्धांत की भी दोनों पति पत्नी ने यही पर चर्चा की है ,
४- गार्गी — गार्गी वैदिक काल के महान दार्शनिको में से एक थी , वह तत्कालीन मिथिला नरेश महाराजा जनक के दरबार के नवरत्नों में से एक थी , वह ऋषि गर्ग के परिवार से थी ,उसने वेद की ढेर सारी रिचाओ की रचना की . और गार्गी संहिता नामक पुस्तक भी लिखा , उस समय महाराजा जनक द्वारा आयोजित दर्शन शास्त्र पर बहस के दौरान उसने ऋषि याज्ञवल्क्य से प्रकृति में उपस्थित तमाम वस्तुओ के उत्पत्ति का कारण पूछा, लेकिन इस सबमे सबसे महत्त्व की बात ये थी की उसे महाराजा जनक के दरबार में विशिष्ट दर्ज़ा हासिल था.
अभी तक तो हम लोगो ने मात्र वैदिक काल की कुछ विशिस्ट महिलाओं का ही अध्ययन किया है , लेकिन वेद के अनुसार महिलाओ की क्या स्थिति रही यह भी जानना महत्वपूर्ण है.
वैदिक काल में स्त्री को शक्ति के रूप में मान्यता प्रदान की गयी और अब तक वह पूज्यनीय बन चुकी थी , औरतो की विभिन्न रूपों की पहचान कर पूजा शुरू की गयी .. कई जगह उसे पुरुष देवताओं से ज्यादा शक्तिशाली दिखाया गया उदाहरण के लिए पुरुष रौद्र रूप शंकर को काली जी के पैरो के निचे प्रदर्शित किया गया. इस काल में औरतो के प्रति लोगो के श्रद्धा और भक्ति में बहुत तेजी आई जैसे ……..
देवी काली – रौद्र शक्ति के रूप में
देवी दुर्गा – रक्च्चात्मक शक्ति के रूप में
देवी लक्ष्मी – पोषण शक्ति के रूप में
देवी सरस्वती – सृजनात्मक शक्ति के रूप में
वैदिक काल में नारी शिक्षा………
वैदिक काल में औरतो की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता था , जो की निम्न श्लोको (हिंदी अर्थ)से स्पष्ट हो जाएगा
१- ”एक बालिका के विकास और शिक्षा में महान प्रयत्न और सावधानी की जरुरत होती है ” (महानिर्वाण तंत्र)
२- ”ज्ञान के सभी रूप में महिलाए है और महिलाओ का स्वरुप ज्ञानमय है ” (देवी महात्य)
वेद ज्ञान का नारी को अधिकार ……
१- वेदों के अनुसार वे महिलाए जो को वेद का अध्ययन करना चाहती है वे निश्चित ही उसका अध्ययन कर सकती है ऐसी महिलाओं को ब्रह्म वादिनी कहते है और इनको जनेऊ पहनने का पूर्ण अधिकार है .
२- एक नव विवाहित स्त्री को वेद ज्ञान को प्राप्त करके अपने नए बसे गृहस्ती में उपयोग करने की बात अथर्ववेद में की गयी है जो की निम्नवत है
” हे दुल्हन ! ईश्वरीय कृपा से वेद का ज्ञान तुम्हारे सामने हो , तुम्हारे पीछे हो , तुम्हारे मष्तिष्क के केंद्र में हो और उसके अंत में भी हो, वेदों के ज्ञान को प्राप्त करने के बाद आप अपने जीवन का संचालन कर सकती है , आप उदार हो, अच्छे स्वास्थ्य और भाग्य की अग्रदूत हो ,और महान गरिमा के साथ रहते हो और आप अपने ज्ञान से अपनी पति का गृह प्रकाशित करे ” (अथर्व वेद अध्याय १४ -१-६४)
स्त्री की महानता ….
निम्न उदाहरण से से स्पष्ट हो जाता है की स्त्री को किस महानता के साथ वैदिक काल में देखा जाता था
”वास्तव में पत्नी की वफादारी और पवित्रता केवल अग्नी से तुलना करने के योग्य है ,शुद्ध अग्निदेव और पतिव्रता स्त्री ही पूजने योग्य है ” (ऋग्वेद संहिता भाग १ शुक्त ७३ श्लोक ८२९)
स्त्री का धार्मिक अधिकार ….
स्त्री को वैदिक काल में सामान धार्मिक अधिकार मिले थे.
”पत्नी को यग्य ,संध्या पूजा और अन्य सभी धार्मिक अनुष्ठानो को करना चाहिए ,अगर किसी कारण पति मौजूद नहीं है तो अकेले महिला को पूरा यग्य करने का अधिकार है” (ऋग्वेद संहिता भाग १ शुक्त ७९ श्लोक ८७२)
वैदिक काल में शादी के कुल ८ विधान थे पर उसमे से कुछ ही प्रचलित थे जैसे
१- कन्या विवाह — इसमे लड़की की शादी बालिग़ होने से पहले ही उसके माता पिता द्वारा किसी अच्छे परिवार के लडके से करा दिया जाता था, और बाद में एक तय उम्र सीमा के बिताने के बाद लड़की के माता पिता उसकी विदाई कर देते थे.
२- प्रौढ़ विवाह– इसके अंतर्गत लड़की जब पुरी तरीके से सोचने समझाने योग्य हो जाती है तो माता पिता की सलाह और स्वयं के स्वीकार्यता से योग्य वर को चुनकर लड़की शादी करती थी
३- स्वयंवर — यह विवाह की श्रेष्ठ रीती थी , जिसमे लड़की अपनी इच्छा से उससे विवाह करने आये योग्य वरो में से किसी एक का वरन करती थी , यह परंपरा लेकिन केवल राज़ परिवारों तक ही सीमित थी , जिसमे विभिन्न देशो के राजकुमार हिस्सा लेने आते थे.
लेकिन इस काल के अंत आते आते एक नयी तरह की विकृत परंपरा ने जन्म ले लिया , जिसे नगरवधू या देवदासी कहते थे , ये आजीवन अविवाहित रहती थी ,और पुरुष इनके साथ आनंदमय समय व्यतीत कर सकते थे , लेकिन आजकल के वेश्या परंपरा से अलग हटकर जो बात थी वह यह थी की इन नगर वधुओ को बेहद सम्मान की दृष्टी से देखा जाता था और इन्हें पूर्ण रूप से राजकीय सहयाता प्राप्त था , ये इतनी गुणी होती थी की राजकुमारिया इनके पास कुछ समय के लिए सीखने के लिए भेजी जाती थी .
इस तरह से वैदिक काल भी महिलाओं की द्रष्टि से अतीव सुन्दर रहा है .
३ – रामायण काल
रामायण काल तो वैदिक काल का मध्य भाग रहा है , इसे लगभग ईशा से ७००० वर्ष पूर्व का माना जा सकता है , अतः इसमे सारे वही गुण पाए जाते है जो की वैदिक काल में पाए जाते है , हम लोगो ने ऊपर ही पढ़ लिया है की महाराजा जनक के दरबार में गार्गी शामिल थी जो की महान विद्वान् थी और महाराजा जनक उससे प्रभावित होकर अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया था. वही विवाह के लिए वही तीनो विधाए विद्यमान थी. स्त्रीयों को दिए गए वचन को पूरा करना कर्त्तव्य का रूप ले लिए था , कैकेयी को दिए गए वचन को पूरा करने के लिए महाराजा दशरथ ने अपने पुत्र श्री राम को जंगल भेज दिया जिसके कारण वो मृत्यु को भी प्राप्त हो गए .. वही इस घटना से एक बात और स्पष्ट हो जाती है की उस समय औरते रणभूमि में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी क्योकि कैकेयी खुद एक वीरांगना योद्धा थी.. और उसके इसी वीरता के कारण उसको अपने पति से वचन मिला था . जहाँ श्री राम के पिता की तीन पत्निया थी वही पर राम ने न केवल खुद बल्कि अपने भाइयो के साथ नया आदर्श स्थापित करते हुए केवल एक पत्नी की परंपरा की शुरुआत की , रामायण का एक सुन्दर प्रसंग है जब श्री राम माता सीता के साथ अयोध्या वापिस आते है तो विवाह के प्रथम रात्रि मिलन से पहले उनकी माता कैकेयी उन्हें समझाती है की आज का दिन उन दोनों युगल जोड़ो के लिए पुरे जीवन का विशेष दिन रहेगा , अतः आज अपनी पत्नी को निश्चित ही कुछ उपहार लेकर जाना . श्री राम जब रात्री को पहुचते है तो बिलकुल खाली हाथ… भगवान् राम ,माता सीता से कहते है की मै कोई भौतिक वस्तु उपहार में नहीं लाया हूँ . पर इतना जरूर वचन देता हूँ की आप ही मेरी प्रथम और आख़िरी पत्नी रहेंगे. वास्तव में भगवान् राम भारतवासियों के आदर्श पुरुष थे , और लोग उनके गुणों का अनुकरण करते थे , उनके इस व्यवहार ने निश्चित ही समाज में एक पत्नीवाद को बढ़ावा दिया होगा ,ऐसा मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है .
अब मै रामायण और रामचरित मानस के विवादस्पद मुद्दों पर चर्चा करना चाहूँगा ..
भगवान् राम पर एक आरोप बहुत ही आसानी से लगाया जाता रहा है की उन्होंने एक धोबी के कहने पर अपने पवित्र और पतिव्रता पत्नी को घर से निकाल दिया इस पर मेरे एक लेखक मित्र संजय कुमार जी ने अच्छा खाशा शोध किया तो पाया की यहाँ भी मिलावट है जी हाँ , जितने भी शोध युक्त अध्ययन किये गए है सबमे उत्तर काण्ड तो है ही नहीं .. सन १८७४ तक उत्तर काण्ड नामक कोई हिस्सा था ही नहीं .सन १८७०- १८७४ में RALPH T. H. GRIFFITH, M. A. नाम के व्यक्ति ने रामायण का इंगलिश मे अनुवाद किया था।
उस लेख में अनुवादक ने लिखा है-The Rámáyan ends, epically complete, with the triumphant return of Ráma and his rescued queen to Ayodhyá and his consecration and coronation in the capital of his forefathers. Even if the story were not complete, the conclusion of the last Canto of the sixth Book, evidently the work of a later hand than Válmíki’s, which speaks of Ráma’s glorious and happy reign and promises blessings to those who read and hear the Rámáyan, would be sufficient to show that, when these verses were added, the poem was considered to be finished. The Uttarakánda or Last Book is merely an appendix or a supplement and relates only events antecedent and subsequent to those described in the original poem. Indian scholars however, led by reverential love of tradition, unanimously ascribe this Last Book to Válmíki, and regard it as part of the Ráamáyan.
LINKS-
http://sacred-texts.com/hin/rama/index.htm
http://manybooks.net/titles/unknown2486924869-8.html
(साभार श्री संजय कुमार जी )
वही रामकृष्ण मिसन के लोगो ने जब उत्तर काण्ड पर शोध शुरू किया तो निम्न निष्कर्ष पर पहुचे
” “The first and the last Books of the Ramayana are later additions. The bulk, consisting of Books II–VI, represents Rama as an ideal hero. In Books I and VII, however Rama is made an avatara or incarnation of Vishnu, and the epic poem is transformed into a Vaishnava text. The reference to the Greeks, Parthians, and Sakas show that these Books cannot be earlier than the second century B.C……”
[ The cultural Heritage of India, Vol. IV, The Religions, The Ramakrishna Mission, Institute of Culture ].
अतः इसमे मुझे आगे ज्यादा कहने की आवश्यकता नहीं रह जाती की माता सीता को घर से निकालने वाली बात में कितनी सच्चाई है .
एक बहुत बड़ा आरोप राम चरित मानस के माध्यम से भगवान् राम पर लगाया जाता है की वे स्त्रीयों को पीटने को उचित मानते है जिसके लिए निम्न चौपाई की लाइने बार बार रटी जाती हैं ..
”ढोल ,गवार ,शुद्र ,पशु ,नारी
सकल ताड़ना के अधिकारी”
इस श्लोक में ताड़ना का अर्थ खडी बोली हिंदी के प्रताड़ना से लिया जाता रहा है , मुझे आज तक इस दोगलेपन का कारण नहीं पता चल पाया की आखिर क्या कारण रहा है की सारे मानस का अर्थ तो अवधी भाषा के शब्दों के हिसाब से लगाया जाता है पर आखिर इन दो लाइनों ने कौन सा अपराध कर दिया जो इसका अर्थ अवधी में नहीं लिया जाता है ?? कोई भी व्यक्ति जो की अवध प्रभाग में रहता है उसे अच्छे से यह बात पता होगी की ताड़ना का अर्थ होता है ” बहुत अधिक ध्यान से देखना ”
और उससे बड़ी बात ये लाइने समुद्र के द्वारा कही गयी है जो की भगवान् राम के कोपभाजन से बचने के लिए ब्रह्मण रूप धारण किया था , और इस बात को प्रस्तुत करने से पहले ही वह कह देता है की वह स्वभाव से जड़ है , जिस तरह से विभिन्न जगहों पर रावण द्वारा बोले गए संवादों की जिम्मेवारी राम पर नहीं डाली जा सकती उसी तरह से समुद्र द्वारा बोले गए शब्दों की भी जिमेवारी भी राम के ऊपर नहीं डाल सकते. पर हमारा दुर्भाग्य है की दोगले आलोचक सब कुछ जानने के बाद भी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर श्री राम को स्त्री के मामले में गाली देते रहते है.
मित्रो रामायण काल को यहाँ पर रखने का मुख्य उद्देश्य ही यही था की विभिन्न विवादस्पद मुद्दों पर एक सच्ची बात रखी जा सके.
४- हड़प्पा ,मोहेंजोदड़ो काल
इसका समय काल थोडा विवादस्पद है ,विभिन्न लोगो द्वारा कुछ सौ साल का अंतर नज़र आता है , मैंने विभिन्न अध्ययनों को को ध्यान में रख कर इसका औसत समयकाल ईशा से ४००० वर्ष पूर्व माना है , हड़प्पा ,मोहेंजोदड़ो काल ऐतिहासिक रूप से तो बेहद महत्त्व पूर्ण है पर नारी विकास से सम्बंधित दस्तावेजो की संख्या बहुत ही कम है पर जो भी है वो मै आप लोगो के सामने प्रस्तुत करूँगा ,क्योकि मै इस लेख के माध्यम से एक ऐसी जानकारी उपलब्ध कराना चाहता हूँ की जब भी पाठक बंधू इसे पढ़े वो कुछ ही समय में पूरा भारतीय नारी विकास क्रम जान सके वो भी दुरुहता से बचाते हुए सारांश के रूप में..
खुदाई के दौरान हर घर में एक ही तरह की मूर्ती मिली ,जिसमे एक औरत बनी हुई है , जिसका सर और बाल सुन्दरता से सजाया गया है , वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है की निश्चित रूप से यह किसी देवी की ही मूर्ती है , कुछ सीले मिली है जिस पर पशुपति नाथ जी की तस्वीरे बनी है तो ऐसा संभव है की यह मूर्ती ”शक्ति” का हो .
एक नर्तकी का धातु का बना हुआ नग्न मूर्ती मिली है जिससे ऐसा प्रतीत होता है की देवदासी या नगरवधू की परंपरा उस समय विद्यमान थी .
औरते बिलकुल सुन्दर और सजाए हुए गहने पहना करती थी , जो की सोने का हुआ करता था . वही मजेदार बात ये है की उस समय औरतो द्वारा लिपस्टिक का प्रयोग किया जाता था और आँखों को सजाने के लिए औरते आई लाइनर का प्रयोग करती थी.
एक सिंह युक्त देवी की पूजा वह पर की जाती थी..
बस्ती के मध्य में एक बड़ा स्नानागार था , लेकिन देशी इतिहासकार जो की भारतीय परम्पराओं को जानते है उनका मानना है की ये स्नानागार न होकर सामूहिक धार्मिक स्थान रहा हो क्योकि कई भारतीय पूजा विधान सामूहिक रूप से पानी के श्रोत के पास ही किया जाता रहा है लेकिन महत्त्व की बात ये थी की इस स्नानागार के पास में ढेर सारे छोटे छोटे कमरे बने हुए थे जिनका उपयोग संभवतः पूजा के बाद कपड़े बदलने के लिए किया जाता था , प्रायः पुरुषो को कपड़े बदलने के लिए इस तरह के किसी बंद कमरे की आवश्यकता नहीं होती है , अतः मेरा निजी तौर पर यह मत है की हड़प्पा ,मोहेंजोदड़ो काल में भी औरते समग्र रूप से धार्मिक क्रिया कलाप में भाग लेती थी . अतः यह काल खंड भी औरतो के लिहाज़ से अच्छा मन जा सकता है.
कूल निष्कर्ष ये है की इस काल में भी औरतो को देवी रूप में पूजा जाता था, औरते अपने सुन्दरता पर अब पहले से अधिक ध्यान देने लगी थी, उन्हें भी पूर्ण धार्मिक अधिकार था ,नगरवधू की परंपरा संभवतः मौजूद रही होगी पर इसका अधिक पुष्ट प्रमाण नहीं मिल पाया है.
मित्रो लेख सर्वथा रूखा सुखा है और रोचक भी नहीं है , पर मैं इतना आप से जरूर वादा कर रहा हु की आप लोगो को मै तथ्यात्मक जानकारी ही उपलब्ध कराऊंगा , अगले लेख में महाभारत काल , सरस्वती नदी सभ्यता , फिर गंगा के मैदान में सभ्यता का आगमन , जैन और बौध उदय काल, मौर्य वंश ,गुप्त वंश इत्यादि में औरतो की दशा पर चर्चा करूँगा. लेखक मित्रो से अनुरोध है की यदि उनके पास तथ्यात्मक जानकारी हो तो उसे भी यहाँ प्रतिक्रिया के माध्यम से प्रस्र्तुत करे.
आपका मित्र
डॉ. भूपेंद्र
२५-०९-२०१२

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