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आत्मा से देह तक – भारतीय नारी विकासक्रम (भाग-2)

ghumantu
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लेख शुरुआत करने से पहले उन सभी ब्लॉगर मित्रो को धन्यवाद जिन्होंने मुझे लेख के अगले हिस्से को लिखने की प्रेरणा प्रदान की , और सभी पाठक बंधुओ को भी हार्दिक आभार .इस तरह के पूर्णतया नीरस विषय पर आप लोगो का इतना प्यार मिला मुझे बिलकुल भी आशा नहीं था.
मित्रो पिछले लेख (drbhupendra.jagranjunction.com/2012/09/25/आत्मा-से-देह-तक-भारतीय-नार/)में आप लोगो से स्त्री विकास के जिस समय काल की चर्चा हुई थी वो निम्नवत थी .
१ – मनु काल
२- वैदिक काल
३ – रामायण काल
४ – हरप्पा काल
अब इस लेख में आगे के समय का वर्णन मै करूँगा, मित्रो अब तक हमने जो अध्ययन किया था उसके बारे में अधिकांश लोगो को पहले से कुछ न कुछ जानकारी रही होगी पर इस भाग में मैंने जो जानकारी इकट्ठी की है वो मै पुरी जिम्मेवारी के साथ कह सकता हूँ की अधिकाँश के बारे में आप लोगो ने सुना भी नहीं होगा. आप लोगो यह जानकर भी अत्यधिक आनंद होगा की कुछ जगहों पर लिखी गयी जानकारी मैंने खुद ही संकलित की है.
लेकिन आगे के वर्णन से पहले मै आप लोगो के सामने आगे के सामने समय काल का विभाजन करना उचित समझता हूँ. मित्रो मैंने आगे के समय काल को निम्नवत विभाजित किया है.
५ – महाभारत काल – ईशा से ३००० वर्ष पूर्व
६ – सरस्वती नदी घाटी सभ्यता – ईशा से ४५०० से २१०० वर्ष पूर्व
( हमारे कुछ मित्र जो की यह मानते है की हरप्पा और सरस्वती नदी घाटी सभ्यता एक साथ रही मैं उनसे सहमत हूँ और वो लोग जो समय काल देखकर यह कह सकते है की सरस्वती नदी घाटी सभ्यता को पहले रखना चाहिए था उनसे मेरा ये कहना है की मेरे पास सरस्वती नदी सभ्यता की नारी विकास सम्बंधित जो जानकारिया हाथ लगी है वो ईशा से २८५० वर्ष पूर्व है अतः उसे महाभारत काल के बाद रखना ही उचित है.)
७ – जैन धर्म उदय काल – ईशा से ९०० से ६०० वर्ष पूर्व तक ( पहले तीर्थंकर ईशा से ९०० वर्ष पूर्व के है जबकि आखिरी भगवान् महावीर ईशा से ६०० वर्ष पूर्व के हैं.)
८ – बौध धर्म उदय काल – ईशा से ५६३ से ४८३ वर्ष पूर्व
९ – मौर्य वंश काल – इसमे विशेष रूप से जो जानकारी प्राप्त हुई है वो आचार्य चाणक्य के ग्रन्थ चाणक्य निति और मेगस्थनीज द्वारा लिखी पुस्तक इंडिका के द्वारा प्राप्त हो पायी है ,इनका समय काल –
क – चाणक्य का – ईशा से ३७० से २८३ वर्ष पूर्व ,
ख – इंडिका ग्रन्थ के लेखन का समयकाल – ईशा से ३५० से २९० वर्ष पूर्व
सर्वप्रथम इस बार भी उसी गलती को दोहराते हुए लेख को शुरू कर रहा हु की लेख इस बार फिर लम्बा हो जाएगा ,कारण ये है की ये विषय इतना बड़ा ,महत्वपूर्ण और गहन है की किसी भी जानकारी को छोड़ देने का मतलब नया बवाल खड़ा करने जैसा हो जाता है , और महाभारत काल के बाद के समय का अध्ययन स्त्री के सम्बन्ध में अच्छी तरह से किया भी नहीं गया है.
अब हम अपने विषय पर लौटते है .

५ – महाभारत काल
draupadi swayamvar
महाभारत काल , भारत के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण कालो में से एक है , इसके समय काल पर विभिन्न विद्वानों में विवाद है पर अब तक का सबसे ज्यादा स्वीकार्य समय काल ईशा से ३००० वर्ष पूर्व का है , इसका प्रमाण ये है की महाभारत युद्ध के दिन जो विभिन्न ग्रहों की स्थिति बताई गयी है उसे ध्यान रख कर समय निकाला जाता है तो महाभारत युद्ध का समय आता है २२ नवम्बर ३०६७ ईशा पूर्व , वही यथार्थ गीता के लेखक परमहंस अड़गड़ानन्द के अनुसार यह युद्ध आज के समय से ५२०० वर्ष पहले हुआ है , यानी की इनका भी हिसाब ईशा से २८०० वर्ष पूर्व के आस पास बैठता है ,कुल मिला कर लगभग ३००० वर्ष ईशा पूर्व लेना ठीक होगा , समय निर्धारण के बाद अब हम तत्कालीन समय में नारी की स्थिति पर विचार करते है , महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखित पुस्तक को आधार बना कर आगे की चर्चा करेंगे ..
महाभारत काल में स्त्रीयों को विशेष आदर की दृष्टि से देखा जाता था फिर भी वैदिक काल की तुलना में स्त्रीयों की स्थिति में कुछ न कुछ गिरावट आ गयी थी . इसका अंदाज़ा पांडू कुंती के संवाद से लगाया जा सकता है ..
” प्राचीन काल में महिलाओं पर कोई प्रतिबन्ध नहीं था , वे स्वतंत्र थी ,उनके द्वारा पति को अस्वीकृत भी किया जा सकता था , तो भी अधार्मिक नहीं माना जाता था , यह तो आज भी महिलाओं का अधिकार है और ऋषियों द्वारा इन नियमो का सम्मान भी किया जाता है”
इस वार्ता से स्पष्ट है की कुछ न कुछ स्त्री के अधिकारों में अवश्य कमी आई थी. पर उनका यह अधिकार उनसे एकदम से छीन नहीं लिया गया था बल्कि कम प्रयोग किया जाने लगा था. वही जब कुंती के आह्वान पर सूर्य देव आते है तो उनसे कुन्ती का संवाद निम्न है .
” दुनिया की सभी महिलाये पूर्णतया स्वतंत्र है , जो की दुनिया का नियम भी है ”
स्त्री को अपने शर्तो पर विवाह करने का अधिकार था ..
यद्यपि महाराजा शांतनु एक राजा थे परन्तु जब उनको गंगा पसंद आ गई तो उन्होंने गंगा से प्रणय निवेदन किया परन्तु गंगा ने शर्त रख दी की वह महाराज से शादी तभी करेगी जब उसके किसी भी काम में राजा पूछताछ न करे , तब शांतनु ये शर्त स्वीकार कर लेते है और वह उस शर्त का पालन तब तक करते रहते है जब तक की गंगा उनके सात पुत्रो को मार नहीं देती .
बाद में महाराजा शांतनु को मछुआरे की पुत्री सत्यवती से प्रेम हो जाता है पर सत्यवती का पिता अत्यधिक कमजोर होने के बावजूद भी उनके सामने शर्त रख देता है की वह अपने पुत्री की शादी तभी महाराज से करेगा जब महाराज यह वचन दे की उसके पुत्री के पुत्र को ही वह राजगद्दी पर बैठाएंगे. हालाकि शांतनु यह शर्त स्वीकार नहीं कर पाते है तथापि उनका पुत्र देव व्रत उनकी इच्छा की पूर्ति के लिए आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प ले लेते है. जिन्हें बाद में भीष्म के नाम से जाना जाता है.
बहुपति विवाह ..
द्रौपती के पांच पति होना और कुंती का नियोग द्वारा पुत्र पैदा करना महाभारत काल में स्त्री स्वतंत्रता के प्रतीक है ( भारत एक खोज – लेखक पंडित जवाहर लाल नेहरू)
पंडित नेहरू ने जहा पांच पतियों का होना स्त्री के स्वतंत्रता का प्रतीक माना है वही पर कुछ विद्वान् इसे अत्याचार कहते है , क्योकि विद्वानों का मानना था की स्वयंवर में अर्जुन ने अकेले जीत हासिल की थी पर उसकी शादी जबरन पाचो भाइयो से करा दी जाती है.
मां बनने का अधिकार .
स्त्रीयों को नियोग का अधिकार था , इसके अंतर्गत जो स्त्री या तो विधवा है या फिर शादी के बाद भी पति से बच्चा पैदा नहीं हो पा रहा है उनको किसी योग्य व्यक्ति द्वारा यौन सम्बन्ध बना कर मां बनने की आज़ादी थी , पर यह यौन सम्बन्ध केवल बच्चा होने तक ही हो सकता था , यानि की इस नियम के अंतर्गत स्त्री को मां बनाने का पूर्ण अधिकार था , इसी अधिकार का प्रयोग करके सत्यवती ने विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद महर्षि वेदव्यास को बुलाकर उनकी पत्नियों से यौन सम्बन्ध बनवाया जिससे पांडू और धृतराष्ट्र पैदा हुए , बाद में पांडू के निवेदन पर भी उनकी पत्नियों ने नियोग द्वारा पांच पुत्र पैदा किया ,३ कुन्ती के और २ माद्री के.
मां को विशेष सम्मान ..
पुत्र को ज्यादातर स्थानों पर मां के नाम से पुकार लिया जाता है. जैसे
भीष्म को सदैव गंगापुत्र के नाम से संबोधित किया गया नाकि शांतनु पुत्र
अर्जुन को या तो पार्थ के नाम से या तो कौन्तेय के नाम से पुकारा गया है
विवाह के तरीके …
विवाह के कई तरीके थे जिसमे से स्वयम्वर तो पहले की तरह ही था,
वही कुछ राज्यों ने नयी परंपरा चलायी जिसके अनुसार वो अपनी घर की स्त्रीयों को योग्य वर को भेट कर देते थे , इसका अच्छा उदाहरण माद्री है जिसको उसके भाई ने महाराजा पांडू के सम्राट होने के बाद भेट कर दी थी. वही भीष्म ने काशी नरेश के लडकियों का अपहरण करके उनकी शादी विचित्रवीर्य से करा दी.
विधवा का जीवन
विधवाओ का समाज में पूर्ण सम्मान था , महारानी सत्यवती अपने पति के मृत्यु के बाद बहुत समय तक राज़ चलाया , कुंती ने जहा अपने पति के मृत्यु के बाद अपने बच्चो के साथ जीवन गुजारा वही ,गांधारी ने अपने पति के मृत्यु के साथ अपना जीवन त्याग दिया, विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद उनकी पत्निया पुरे सम्मान के साथ राज़ महलों में रहती थी .अतः विधवाओं की स्थिति ठीक थी , विधवा विवाह के कुछ ख़ास सबूत तो नहीं मिलते पर आगे के लेख में मैं एक घटना का वर्णन अवश्य करूँगा जो की विधवा विवाह पर मोहर लगता है .
महाभारत काल की बात हो और भगवत गीता की बात न की जाय असंभव ही है .. गीता में पहले ही अध्याय में अर्जुन ने स्त्रीयों के चरित्र पर विशेष ध्यान देने को कहा है.
” हे कृष्ण ! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रिया अत्यंत दूषित हो जाती हैं , और हे कृष्ण स्त्रीयों के दूषित हो जाने से वर्ण संकर उत्पन्न होता है ” अध्याय १ श्लोक ४१
” इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियो के सनातन कुलधर्म और जातिधर्म नष्ट हो जाते हैं” अध्याय १ श्लोक ४३
भगवान् श्री कृष्ण ने स्त्रीयों को भगवत प्राप्ति का पूर्ण अधिकार के बारे में निम्नवत कहा है .
”हे अर्जुन! स्त्री , वैश्य , शूद्र , तथा पापयोनि, चांडाल आदि ,जो भी है ,मेरे शरण में होकर परम गति को प्राप्त होते है” अध्याय ९ श्लोक ३२
वही स्त्रीयों में अपनी उपस्थिति के दर्शाते हुए श्री कृष्ण कहते है
”स्त्रीयों में कीर्ति ,श्री , वाक् , स्मृति , मेधा , धृति, क्षमा हु.” अध्याय १० श्लोक ३४
कुछ लोगो ने एक नया विषय शुरू किया है वो ये है की पांडवो का अनार्य स्त्रीयों से भी सम्बन्ध रहा , जिनमे तीन स्त्रीयों का नाम आता है जो की निम्नवत है.
१ – चित्रांगद – इसका सम्बन्ध अर्जुन से तब हुआ जब वो मणिपुर में थे , बाद में बब्रुवाहन नामक एक पुत्र पैदा हुआ लेकिन मणिपुरी परंपरा के अनुसार चित्रांगद के पिता ने बब्रुवाहन को अपना उत्तराधिकारी बना दिया और चित्रांगद को भी वही रख लिया
२ – उलोपी – यह भी अर्जुन की पत्नी थी यह एक विधवा थी और नागा वंश की थी .और यह भी मणिपुर की ही थी – यह एक मात्र ऐसा प्रसंग है जिससे सिद्ध होता है की समाज में विधवा विवाह की व्यवस्था विद्यमान थी
३ – हिडिम्बा – इसका विवाह भीम से हुआ था , इसका एक पुत्र था जिसका नाम घटोत्कच था जो की महाभारत के युद्ध में मारा गया .
इन तीनो का परिचय देने का मेरा उद्देश्य यह नहीं था की आप लोगो का सामान्य ज्ञान बढ़ा दू बल्कि उस नए विवाद पर ध्यान दिलाना था जो की कुछ मूर्खो द्वारा शुरू किया गया है जिसके अनुसार इन अनार्य महिलाओं में से चित्रांगद और उलोपी का तो ध्यान बाद में भी इसलिए रखा गया क्योकि ये गौर वर्ण की थी जबकि हिडिम्बा काली थी जिसके कारण उसका विशेष ध्यान नहीं दिया गया पर मित्रो जब मैंने इस विषय में गहन खोज की तो पता चला की हिडिम्बा ने संन्यास ले लिया था और तपस्या करने लगी थी , और पारिवारिक मोह माया से ऊपर उठ चुकी थी , हिडिम्बा की याद में मनाली में जहा पर उसने घटोत्कच को जन्म दिया था ”हिडिम्बा देवी मंदिर ” भी बना हुआ है , और यह भी समझ से परे है की हिडिम्बा जो की मनाली के आस पास की थी वह काली कैसे हो सकती है जब की वहा के जलवायु के अनुसार वहा के लोग गोरे ही होंगे.
इस तरह से महाभारत काल को मैंने आप लोगो के सामने रखने की कोसिस की है , महाभारत काल के ग्रंथो के अनुसार जो मेरा निजी निष्कर्ष है की स्त्रीयों की दशा अच्छी थी पर पहले से थोड़ी कमी आई थी . बहु विवाह तेज़ी से प्रचालन में था , विधवा विवाह संभवतः होता था पर कम प्रचलित था , विधावावो को पूरा सम्मान और अधिकार था , स्त्री को संपत्ति की दृष्टि से देखने की भूल एक बार युधिस्ठिर ने की थी पर उनकी पत्नी ने उनको मुह तोड़ तार्किक जबाब दिया था और लोगो ने उसकी बात स्वीकार भी कर ली थी, वही श्री कृष्ण ने धर्म में स्त्रीयों को पूरा अधिकार प्रदान किया. और उनमे भी परमात्मा की उपस्थिति बताई. वही जरासंध द्वारा बंदी बनायीं गयी कई हज़ार स्त्रीयों को उन्होंने उसको मारकर मुक्त कराया और राज्य के द्वारा पूरा खर्चा उठाने की जिम्मेवारी ली गयी .

६ – सरस्वती नदी घाट सभ्यता
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सरस्वती नदी का अस्तित्व सतलज और यमुना नदी के बीच में था , सरस्वती नदी घाटी सभ्यता की शुरुआत सिन्धु नदी घटी सभ्यता के साथ ही हुई है या युं कहे की दोनों एक है हालांकि सरस्वती नदी सभ्यता सिन्धु नदी सभ्यता के बाद तक जीवित रही ,अतः इसको अलग से यहाँ पर रख कर अध्ययन करेंगे , सरस्वती नदी का वर्णन कई जगह ऋग्वेद में आता है , नदी स्तुति में इसे सात नदियों की माता का स्थान प्राप्त है , इसे सप्त सिन्धु की माता भी कहते है .. ये सात नदिया निम्नवत थी
१ – सतलज , २ – सरस्वती , ३ – व्यास ,४ – रावी , ५ – चिनाव , ६ – झेलम , ७ – सिन्धु
सरस्वती नदी के सुखने का वर्णन पूरी तरह से महाभारत में मिलता है इस लिए यह तो निश्चित है की यह नदी महाभारत काल से पहले तक विराजमान थी और महाभारत काल के बाद समाप्त हो गयी लेकिन नदी के ख़त्म होने के बावजूद वहा की सभ्यता समाप्त नहीं हुई बल्कि धीरे धीरे यह सभ्यता गंगा यमुना के दोआब में चले आये. कुछ मित्र ये प्रश्न उठा सकते है की ये सभ्यताए पश्चिम में भी तो जा सकती है पर पूर्व में ही आई इसका कारण क्या है मित्रो जो निष्कर्ष मैंने अपने अध्ययन के आधार पर निकाला है वो ये है की बिलकुल वैसा ही वातावरण उन्हें पूर्व के भाग भी में मिला , जैसा की उन्हें पहले पश्चिम हिस्से में मिला था . यहाँ भी नदियों का वैसा ही जाल मिल गया , यह पर निम्न नदिया क्रमशः पश्चिम से पूर्व में है.
१ – यमुना , २ – गंगा ,३ – गोमती , ४ – घाघरा , ५ – कोसी , ६ – राप्ती , ७ – केन
मै विषय से भटक कर भूगोल पर इसलिए चला गया की आगे के इतिहास के पन्ने गायब है पर इसका अर्थ ये बिलकुल नहीं की कोई भिन्न संस्कृति गंगा यमुना दोआब में विकसित हो गयी , कहने का अर्थ ये है की अब तक जो हमने अध्ययन किया है सारा विषय आगे के इतिहास में भी वैसा ही चला है बस स्थान बदल गया है . मित्रो मैंने बहुत कोसिस की तो जो कुछ स्त्री से सम्बंधित सरस्वती नदी सभ्यता में जानकारी मिल पाया वो अत्यल्प है पर फिर भी मै उसे आप लोगो के सामने प्रस्तुत अवश्य करूँगा .
सरस्वती नदी घाटी में ईशा से २८०० वर्ष पूर्व की स्त्री की एक सुन्दर मूर्ति मिली है , यह नौशारो नामक स्थान पर मिली है यह गले में सुन्दर हार पहने हुए है , और इसके बाल सुसज्जित है पर सबसे महत्वपूर्ण जानकारी वो ये है की स्त्री के माथे पर से शुरू होकर सर के मध्य हिस्से में तक लाल रंग का वर्णक लगा हुआ था ,जिसका जांच करने पर पता चला की यह सिन्दूर था अतः विवाहित स्त्रीयों को सिन्दूर लगाने की परंपरा सरस्वती नदी घटी में शुरू हुई ,ऐसा माना जा सकता है , वही कुछ और पुराने जीवाश्म मिले जिसमे से एक स्त्री का था वह हाथो में कंगन पहने हुई थी ,वह शंख का बना हुआ था ,संख की बनी हुई माला भी मिली जो की ईशा से ६५०० वर्ष पहले का है , जो की यह सिद्ध भी करता है की सरस्वती नदी घाटी सभ्यता बेहद प्राचीन भी थी और विकसित भी.
सरस्वती नदी घाटी के सम्बन्ध में ज्यादा जानकारी नहीं है अतः कुछ खास निष्कर्ष नहीं निकाल सकते पर इतना अवश्य पता चलता है की सिन्दूर लगाने की महत्वपूर्ण प्रथा यही से शुरू हुई है .

७ – जैन धर्म उदय काल
jain women
जैन धर्म के कुल २४ तीर्थंकर हुए जिनमे से पहले तो ईशा से ९०० वर्ष पूर्व हुए लेकिन सबसे आखिर और सबसे महत्वपूर्ण भगवान् महावीर ईशा से ६०० वर्ष पूर्व हुए . जैन धर्म में स्त्रीयों को विशेष धार्मिक स्वतंत्रता नहीं दी गयी है , जैन धर्म में दो वर्ग है
१ – दिगंबर – ये नग्न अवस्था में रहते हैं , भगवान् महावीर भी इसी पंथ के थे वे भी दिगंबर ही थे , दिगंबर मत के अनुसार स्त्री सीधे निर्वाण की प्राप्ति नहीं कर सकती , निर्वाण के लिए उसे पुरुष के रूप में फिर से जनम लेना पड़ेगा फिर वो निर्वाण प्राप्त कर सकती है.
२ – श्वेताम्बर – ये श्वेत वस्त्र धारण करते है इनके अनुसार वो स्त्री भी निर्वाण प्राप्त कर सकती हैं.
दिगम्बरो का मानना है की स्त्रीयां स्वभाव से ही कुछ न कुछ हिंसक होती है , उसका कारण देते हुए कहते है की उनके मासिक धर्म से अति लघु जीवो की मृत्यु हो जाती है वही आधुनिक जैन संतो ने इसे नकार दिया है पर उस समय के जैन मत मानने वालो ने आँख मूद कर इस विचित्र तर्क का समर्थन किया और स्त्रीयों को निचा दिखाया.
वही कुछ पुरानी साहित्यों में औरतो को निर्वाण लायक न होने के कुछ वैज्ञानिक तर्क भी प्रस्तुत किया है उनके अनुसार औरते ममतामयी होती है , वो सबकी चिंता करती रहती है अतः वो कभी भी सभी प्रकार की चिंताओं से पूर्ण मुक्त नहीं हो सकती , उन्हें कभी अपने भाई का ख्याल आएगा तो कभी पति का तो कभी बेटे का , और किसी भी तरह का बंधन और चिंता निर्वाण में बाधा है .जैन धर्म में हम लोग अभी तक केवल धार्मिक गतीविधियो में महिलाओं के स्थिति की चर्चा कर रहे थे , इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है की औरतो पर किसी तरह के जुल्म की इजाज़त जैन धर्म देता है, समाज में औरतो को बराबर का अधिकार प्राप्त था ,
निष्कर्ष ये है की जैन धर्म में उस समय धार्मिक कार्यो में स्त्रीयों को कम अधिकार प्राप्त था पर सामाजिक जीवन में उन्हें बराबरी का हक़ था .
८ – बौध धर्म उदय काल
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महात्मा बुद्ध का समय काल ईशा से ५६३वर्ष पूर्व से लेकर ईशा ४८३ वर्ष पूर्व तक माना जाता है , शुरू में गौतम बुद्ध स्त्रीयों के सन्यासिन बनने के घोर विरोधी थे , उनको लगता था की स्त्रिया उनके सारी व्यवस्था को खराब कर देंगी लेकिन अपने चचेरे भाई आनंद के निवेदन पर अपने मौसी और माता ( गौतम बुद्ध के माता की मृत्यु तभी हो गया था जब वो ७ दिन के थे उनका पालन पोषण उनकी मौसी ने ही किया ) महाप्रजापति गौतामी को अपना शिष्या बनाया , उसके बाद उसके साथ ५०० अन्य औरते भी सन्यासिन बन गयी , उसके बाद उन्होंने बेहद तेज़ काम करना शुरू किया जिसके कारण ”महाकश्यप” ( बुद्ध के शुरू के अनुयायी थे) डर गए और उनके ऊपर ८ अलग से नियम लगा दिए , वही कुछ जानकार कहते है की यह नियम गौतम बुद्ध ने ही लगाया था . ये नियम निम्नवत हैं.
१ – एक सन्यासिन को सदैव किसी भी पुरुष सन्यासी के सामने दंडवत होना पड़ेगा , इसमे किसी तरह का वरिष्ठता क्रम नहीं देखा जाएगा .
२ – महिला सन्यासिन को सदैव ऐसे स्थान पर रहना होगा जहाँ आस पास पुरुष सन्यासी भी रहते हो ( संभवतः यह सुरक्च्चा की दृष्टि से किया गया होगा )
३ – एक महिला सन्यासिन को किसी वरिष्ठ सन्यासी द्वारा महीने में दो बार धम्म को सुनना होगा और आजीवन उसका पालन करना होगा .
४ – किसी भी सन्यासिन को दो संघो से व्रत लेना पड़ेगा , एक पुरुष संघ से दुसरे महिला संघ से
५ – यदि कोई सन्यासिन धम्म के अतिगंभीर नियमो में से किसी भी एक को तोड़ती है तो उसे दोनों संघो से माफ़ी मांगनी पड़ेगी और फिर से जीवन भर धम्म का पालन करने का प्रण करना होगा
६ – एक नौसिखिया सन्यासिन को प्रौढ़ सन्यासिन बनाने से पहले दोनों संघो से एक एक अध्यापक चुनकर उनसे दो साल तक धम्म को सिखना होगा
७ – किसी सन्यासिन द्वारा किसी अध्यापक को आरोपित नहीं किया जाना चाहिए , उन्हें केवल ज्ञान ,विवेक और सत्य युक्त शब्द बोलना चाहिए और धम्म को जीवन में लाना चाहिए
८ – एक वास्तविक सन्यासिन को इतना ज्ञान होना चाहिए की वो वो अपने अध्यापक को भी पढ़ा सके और धम्म को अपने जीवन में पूर्णतया उतार सके .
इन नियमो का पालन करते हुए किसी भी स्त्री को बौध धर्म में सन्यासिन बनाने का अधिकार दे दिया गया ,
वही सुत्त पिटाका के मज्झानिकाय में गौतम बुद्ध कहते है की ”यह असंभव है की एक औरत पूर्ण प्रबुद्ध , ब्रह्माण्ड सम्राट , भगवान् का भी राजा , मृत्युंजय या ब्रह्मा बन सके ” जबकि पुरुषो के बारे में इसका उल्टा विचार था .
अतः हम ये देख सकते है की बौध धर्म के शुरूआती अवस्था में महिलाओं के साथ थोडा बहुत अन्याय था पर बाद में कुछ समय बाद ये समाप्त हो गया हमे बाद का इतिहास पता है की सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा एक बड़ी धर्म प्रचारक थी.

९ – मौर्य वंश काल
मौर्य वंश काल का इतिहास बहुत ही कम लिखित रूप में मिल पाया है जो भी मिला है वो औरतो की दृष्टि से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है , लेकिन मेगस्थनीज़ द्वारा लिखित पुस्तक इंडिका में काफी जानकारिया है लेकिन दुर्भाग्य है की इंडिका की कोई प्रति नहीं बची है लेकिन फिर भी बाद के विभिन्न रोमन ग्रंथो में इसके हिस्से मौजूद है जिससे काम भर की जानकारी मिल जाती है , वही आचार्य चाणक्य द्वारा लिखा गया चाणक्य निति स्त्रीयों के सामाजिक स्थिति के बारे में कुछ बयान नहीं करता बल्कि स्त्रीयों के बारे में उनके निजी विचार मात्र व्यक्त करता है फिर भी हम दोनों ग्रंथो का अध्ययन करेंगे .
क – चाणक्य निति – आचार्य चाणक्य का समय काल ईशा से ३७० से २८३ वर्ष पूर्व का है उन्होंने अपने ग्रन्थ चाणक्य निति में औरतो के बारे में विचार व्यक्त किया है , कुछ यहाँ पर मै आप लोगो के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ पर आप में से ज्यादातर लोगो ने ये सब सुन रखा है अतः मै ज्यादा विवेचना नहीं करूँगा क्योकि लेख पहले से ही इतना लम्बा हो चूका है ..
~ अच्छी औरत वो होती है जो पति के साथ भोजन कराते वक़्त मां जैसा व्यवहार करे , दिन में पति का स्वागत ऐसे करे जैसे सगी बहन हो , पति की सेवा ऐसे करे जैसे की की दासी और रात में बिस्तर पर ऐसा व्यवहार करे जैसे वेश्या ..
~ ज्यादातर पारिवारिक झगड़ो की जड़ औरते होती है .
~अत्यधिक पढ़े लिखे पंडित और देवताओं को भी औरतो का साथ अच्छा लगता है .
~ किसी भी उम्र की महिला हो वह अपने आप को सदैव युवा समझती है और चाहती है की पुरुष उसके पीछे ही रहे
~औरत वास्तव में वो होती है है जो बेहद चालाक होने के साथ साथ पवित्र और पतिव्रता भी होती है .
~ आदमी की तुलना में औरतो में की भूख २ गुना शर्म ४ गुना साहस ६ गुना और कामोत्तेजना ८ गुना होती है .
~औरत इस दुनिया की सबसे बड़ी आकर्षण है है भले ही पुरुष पूरी दुनिया जीत ले पर औरतो के सामने दूम हिलाने लगता है .
~यदि कोई औरत अच्छे और संस्कारी परिवार की हो पर भले ही सुन्दर न हो तब पर भी व्यक्ति को उस औरत से शादी कर लेना चाहिए.
मित्रो जैसे ही चाणक्य निति को औरतो के सन्दर्भ में रखा जाता है तुरंत चर्चा इस बात पर चली जाती है की चाणक्य सही थे या गलत ,लेकिन यहाँ पर यह हमारा विषय नहीं है ,चाणक्य ने किसी भी तरह की सामजिक स्थिति का ब्यौरा नहीं दिया है फिर भी कुछ बाते ध्यान में रखनी होगी की आचार्य चाणक्य एक चतुर व्यक्ति थे और उन्होंने भारत में सबसे पहले कूटनीति की नीव रखी , उनका सारा लेखन कार्य इस तरह से होता था की चन्द्र गुप्त के मन में हमेशा सतर्कता बनी रहे , कुछ लोगो का मानना है की सिकंदर के मंत्री सेल्यूकस के लड़की की शादी चन्द्रगुप्त से हुई थी जिसके बाद दोनों में संधि हो गयी , सिन्धु नदी के पूर्व का भारत चन्द्रगुप्त को मिल गया जबकि सिन्धु नदी के पश्चिम का हिस्सा सेल्यूकस के लिए छोड़ दिया गया , लेकिन चाणक्य के मन में शंका बैठ गयी थी की या तो सेल्यूकस की लड़की खुद या कोई और विषकन्या बनकर चन्द्रगुप्त को मार सकता है इसीलिए उसने बार बार स्त्रीयों को अविश्वसनीय करार दिया और और उनसे संभल कर रहने की सलाह देते थे.
इन बातो का बहुत बार विश्लेषण किया जा चूका है अतः बार बार एक ही बात पर चर्चा करना ठीक नहीं ,मैं अब इसी काल खंड के अगले हिस्से पर जा रहा हु
ख – मेगास्थनीज़ द्वारा लिखित पुस्तक ”इंडिका” का वर्णन
अब मै आप लोगो के सामने बिलकुल नए विषय को रखूँगा जिस पर पहले अलग से कोई शोध कार्य नहीं हुआ था , मेगस्थनीज़ ने इंडिका पुस्तक को लिखा है उसमे औरतो के बारे में जो भी जानकारी मिली है मैंने इकठ्ठा करके आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ. यह पुस्तक कही भी अब उपलब्ध नहीं है जो भी जानकारी उपलब्ध हो पायी है वो इसके बाद लिखे अन्य पुस्तकों में मिली हैं . जो की निम्नवत है .
राजा और और उनके घर वालो के सुरक्षा की जिम्मेवारी पूर्णतया औरतो पर होती थी , राजा जब सोता था तो शयन कक्ष के सबसे पास औरतो का एक सुरक्षा घेरा होता था , उसके बाद ही अन्य सुरक्षाकर्मी होते थे , क्योकि पुरुषो पर कम भरोषा होता था क्योकि वह राज्य के लालच में राजा की हत्या भी कर सकते थे , पर ऐसा नहीं था की औरते विश्वासघात नहीं कर सकती थी ,जो औरत राजा की हत्या करती थी वो अगले राजा की पत्नी बन जाती थी ,
राजा जब बाहर जाता था ,जैसे की न्याय करने के लिए, तब उसके चारो ओर महिला सुरक्षाकर्मियों का एक घेरा होता था , राजा जब शिकार करने जाते थे तो उसके साथ २-३ शस्त्रधारी महिलाये भी होती थी ,यदि राजा खुले मैदान में शिकार करता तो वह हाथी के पीछे खड़ा रहता जबकि उस समय कुछ औरते रथ पर कुछ हाथी पर कुछ घोड़ो पर सुरक्षा हेतु तैयार रहती थी.
इस वर्णन का अर्थ ये है की औरतो को भी जंग लड़ने की पूरी तैयारी करायी जाती रही होगी और उन्हें पुरुषो से ज्यादा विश्वसनीय माना जाता रहा होगा . और हो सकता है की औरते भी युद्ध में भाग लेती रही हो .
उसके अगले वर्णन में चलते है …
”एक व्यक्ति कई पत्नी रख सकता था , किसी महिला या पुरुष को गुलाम नहीं बनाया जा सकता था लेकिन सबके पास खूब काम होता था इसलिए उन कार्यो को संभालने के लिए कई बच्चे पैदा किये जाते थे किसी गुलाम की जगह ये बच्चे ही पूरा काम काज देखते थे”
इस प्रसंग से तो बहुपत्नी विवाह बेहद सामान्य बात नज़र आती है ,वही एक अच्छी बात समझ में आती है की हमारे राष्ट्र में प्राचीन समय से ही किसी भी व्यक्ति को गुलाम बनाने की परंपरा नहीं रही ,
आगे वह लिखता है ….
”गर्भ धारण के समय स्त्री ज्ञान प्राप्त करती थी, और ऐसा माना जाता था की जो स्त्री जितना मन लगाकर इन बातो को सुनेगी वह उतना ही भाग्यशाली होगी अर्थात उसका पुत्र उतना ही गुणी होगा”
अगले प्रसंग में वह एक ऐसे राज्य की बात करता है जहाँ स्त्री ही राज्य की सर्वे सर्वा होती है वर्णन निम्नवत है
एक राज्य जिसका नाम पांडेईयन है वहा की सर्वेसर्वा महिला ही होती है , यहाँ की औरतो को ६ वर्ष की अवस्था में बच्चे हो जाते थे ”
वह ”पांडेईयन” के बारे में कई बार वर्णन करता है जिसके अनुसार स्त्री के राजा बनने की बात दोहराता है लेकिन यह बात अविश्वसनीय लगती है की ६ साल की उम्र में बच्चे हो जाते थे , यह एक सामान्य सी बात है की औरतो का मासिक धर्म ही ११- १३ वर्ष की आयु में शुरू होता है तो भला बच्चा ६ साल की उम्र में कैसे हो सकता है ??
लेकिन जहाँ तक मै सोचता हूँ की भारत में यह बहुत आम बात है की बच्चिया अपने छोटे भाई बहनों को बड़े प्रेम से घुमाते फिराते और खेलाते है शायद यही देखकर मेगस्थनीज़ को भ्रम पैदा हो गया हो.
आगे के प्रसंग में वह औरतो के सजने सवरने पर थोडा सा प्रकाश डालता है ..
”घास खाने वाला एक जानवर जो की घोड़े से २ गुना ज्यादा बड़े थे , उनकी पूछ एकदम काले रंग की होती थी उसमे खूब बाल होते थे , उन बालो को औरते इकठ्ठा करती थी और उसका जूड़ा तैयार करती थी फिर उसके बाद इसे अपने असली बालो में लगा कर श्रृंगार करती थी और विभिन्न आकर्षक तरीको से अपने बालो को सजाती थीं ”
औरतो के धार्मिक आजादी पर मेगस्थनीज़ लिखता है की पूजारियो के दो समूह होते थे .
१ – ब्राचमेन (यह शब्द ब्राह्मन के जगह पर इस्तेमाल किया गया है) ये बचपन से दर्शन पढ़ते थे और एक निश्चित उम्र के बाद शहर से सूदूर चले जाते थे और ब्रम्हचर्य का पालन करते थे और मांसाहार प्रतिबंधित था , और अधिकतम ३७ साल बाहर बिताकर वापस लौट आते थे . फिर सामान्य जीवन जीते थे और शादी व्याह ,बच्चे सब कुछ करते थे .
२ – गारमेन- ये दो तरह के होते थे …..क) हैलोबी – ये जंगल में रहते थे और आजीवन कुवारे रहते थे, ये पेड़ो की छाल को कपडे की तरह इस्तेमाल करते थे , और पत्ती और फल खाते थे ,हालाकि ये जंगल में रहते थे फिर भी राजा समय समय पर इनसे राज्य कार्य के लिए सलाह लिया करता था
ख) वैद्य या उपचारक – ये जंगलो में नहीं रहते थे ये बस्तियों में जाकर लोगो से मिलते रहते थे और जो लोग इन्हें अपने घर बुलाते थे वही पर भोजन करते थे ,ये लोगो का उपचार करते थे ,और विभिन्न प्रकार के जादू इत्यादि लोगो को दिखाते थे .
औरतो को ब्राचमेन बनाने पर रोक थी पर वे गारमेन बन सकती थी , हालाकि इनकी संख्या कम थी पर इन्हें गारमेन बनने की पूर्णतया स्वतंत्रता थी , वही कुछ जगहों पर मेगस्थनीज़ लिखता है की औरतो को धार्मिक कार्यो को करने के लिए पूर्णतया आज़ादी थी पर फिर भी वे पुजारी नहीं थीं .औरते धार्मिक विद्वता प्राप्त करने के लिए पूर्णतया स्वतंत्र थी ,लेकिन उन्हें तपस्वी जीवन की कठिनाइयो और एकाकी जीवन में औरत होने के कारण संभावित परेशानियों को देखते हुए उन्हें सन्यासी न बनने की सलाह ही दी जाती थी
इस प्रकार हम देखते है की इस काल में औरतो को पुजारी और ब्राह्मन बनने पर रोक थी हालाकि उनके लिए गारमेन बनने के रास्ते खुले हुए थे , उन्हें सामान्य कार्यो में पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता थी , और वे धार्मिक विद्वता भी हासिल कर सकती थी ,
चन्द्रगुप्त मौर्या और मौर्य वंश का समय काल औरतो के लिहाज़ से ठीक कहा जा सकता है ,यहाँ पर जो महत्वपूर्ण बात पता चलती है वो ये है की औरते पहली बार रामायण काल के बाद (कैकेयी युद्ध में राजा दशरथ को बचायी थी) सुरक्षा और युद्ध का काम देखती है , लेकिन औरतो की धार्मिक स्वतंत्रता थोड़ी सी कम कर दी गयी .
मित्रो आज का लेख यही पर समाप्त करते है , लेख के अंत में भी लेख के अत्यधिक लम्बा होने के लिए माफ़ी मांगता हूँ.. और यह विषय ऐसा है की कुछ ख़ास रोचकता नहीं आ पाती, यदि आप लोगो को कुछ इसमे गड़बड़ी दिखे तो मेरा ध्यान जरुर आकृष्ट कराइए ,
मैंने पूरी कोशिस की है की इस लेख में सही तथ्यों को ही डाला जाय, फिर भी हो सकता की कोई गलती रह ही गयी हो तो या तो मै खुद अगले लेख में इसे ठीक करने की कोशिश करूँगा या फिर आप लोग प्रतिक्रिया के रूप में मेरा मार्गदर्शन करे , लेख के कुछ हिस्से पूर्णतया मेरी शोध पर आधारित है अतः उन ख़ास हिस्सों का प्रसंग सीधे सीधे मै उपलब्ध करना मेरे बस में नहीं है . अतः मै ऐसे जगहों पर यदि कोई व्यक्ति किसी तरह का सबूत मांगेगा तो मै उसे उन किताबो की सोफ्ट कॉपी अवश्य उपलब्ध करा दूंगा जहा से उनको लिया गया है .
मित्रो आप लोग अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे , और मेरी कमियों को भी रेखांकित करे .अगले लेख में ईशा २०० वर्ष पूर्व से लेकर सन ८०० तक यानि १००० साल तक की चर्चा लेख में रखूँगा .
ब्लॉगर मित्रो के अलावा अन्य मित्र अपनी राय निम्न पते पर दे .
singh2007bhupendra@जीमेल.कॉम
आपका अपना मित्र – डॉ भूपेंद्र

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