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कश्मीर के आजादी के लिए जब तब नारा बुलंद होता ही रहता है. एक तरफ जहा राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग कश्मीर को अलग करने पर विरोध करते है वही आज कल के तथाकथित बुद्धजीवी समाज के लोग राष्ट्रवादी लोगो के इस सोच को कट्टरता भरा और मानव स्वतंत्रता विरोधी सोच की संज्ञा देते है. और ये स्वघोषित महान अपने आप को और महान घोषित करने के लिए कश्मीर के स्वतंत्रता का बार बार राग अलापते है और तमाम तर्क वितर्क और कुतर्क करते है ये बात अलग है की वो कश्मीरी पंडितो के विषय में या तो मौन साध लेते है या फिर उसे मुसलमानो की बीत चुकी गलती बताकर ख़तम कर देते है और कहते है की अब चुकी घाटी में केवल मुस्लिम समुदाय के लोग ही बचे है इसलिए उन्हें उनके परम्पराओं के अनुसार ही जीने दिया जाय परन्तु इस विषय में इन तथाकथित बुद्धजीवियो , कश्मीर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियो से कुछ प्रश्न पूछने जरुरी हो जाते है क्योकि इन प्रश्नों के उत्तर दिए बिना कश्मीर को आजादी देने का कोई औचित्य ही नहीं है.
कश्मिरियों को आजादी दिया जाय पर उससे पहले उन्हें यह बताना जरुरी हो जाता है की
उनके पास खेती योग्य जमीन कितनी है?
कितना उद्योग धंधा या उसको चलाने के लिए बुनियादी ढांचा कितना है?
कितने अपने दम पर चलने वाले शिक्छा संस्थान हैं?
यदि भारत उन्हे उनकी तथाकथित आजादी दे भी दे तो क्या वो अपने बल पर पाकिस्तान और चीन से अपना बचाव कर पायेंगे?
और यदि उनके आजादी का मतलब अंत मे पाकिस्तान से मिलना ही है तो क्या इसी जहन्नुम मे मिलने को वो बेकरार है?
क्या भारतभूमि के किसी हिस्से का विकास भारतभूमि से कटकर कभी हो पाया है?
क्या इस्लामिक विचारधारा कभी भारतभूमि का विकास कर पाने मे सफल हो पायी है?
क्या पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंग्लादेश भारतभूमि में इस्लामिक सभ्यता के असफलता के प्रतीक नही है?
यदि तथाकथित जन्नत/ जहन्नुम के खयाली बातो और उसके मानसिक सुखो को छोङ दिया जाय तो क्या इस्लाम इस पवित्र भारतभूमि पर मुस्लिमों का भी उद्धार कर पायी है?
क्या कश्मिरी अलग तरह के सुविधाओं, मांगो को छोङकर शांतिपुर्वक भारतीय बनकर अन्य प्रदेशो की भाति विकास नही कर सकते?
यदि उनको कोई भारत से एकात्म होने से रोक रहा है तो आखिर वो कौन सी शक्ति है?
क्या यह वहीं शक्ति नही जिसने अफगानिस्तान पाकिस्तान बंग्लादेश जैसे फर्जी और असफल देशों को पहले भारत से तोङने और फिर उसे बर्बाद करने मे कोई कसर नही छोङी?
जब ये सिद्ध हो चुका है की इस्लाम भारतभूमि के किसी व्यक्ति के चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम के सुख का आधार नही हो सकती तो आखिर उस विनाशकारी शक्ति के पीछे क्यो दौङा जाय?
ये भी सर्वविदित सत्य है की भारतभूमि से कटे देश न केवल अपने नागरिको के लिये खतरा बने हैं बल्कि भारतभूमि के एक नये शत्रु के रुप मे भी आए है तो जानबूझ कर न केवल कश्मिरियों बल्कि शेष भारत को भी खतरे मे क्यो डाला जाय?
यदि कोई व्यक्ति नशे मे चुर हो अपना भला बुरा बिना समझे यदि जहर पीने की कोशिस करे तो क्या एक समझदार व्यक्ति होने के नाते हम उसके नशे और जहर को रोकेंगे या उसे आत्महत्या को प्रेरित करेंगे?
यदि अरब की सभ्यता भारतभूमि में मानवमात्र को सुख देने मे नाकाम साबित हुआ तो क्या यहा के लोगों को उस सभ्यता को बचाना समझदारी है?
यदि भारतभूमि ही यहा के मानवमात्र के कल्याण का मार्ग है तो माँ भारती को ही क्यो न चुने?
मनुष्य को बचाना जरुरी है या अरब की सभ्यता को?
जब भारत मे यह सिद्धसत्य है की अरब की सभ्यता यहां के भूमि और मानवमात्र के लिये केवल कष्टकारी है तो क्यो नही हिन्दू और मुसलमान दोनो मिलकर इस गन्दगी को भारत भूमि से मिटा दे?
ये तो कुछ जीवन दर्शन और इतिहास पर आधारित सत्य है जिनका जबाब इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को देना ही होगा. वैसे भी जीवन दर्शन पर आधारित बातो का जबाब तो तर्कों कुतर्को से दिया भी जा सकता है पर क्या इतिहास को भी तर्क वितर्क और कुतर्क के बल पर बदला जा सकता है ? इतिहास तो सबक लेने और सिखने सिखाने के लिए होता है पर बार बार ये बुद्धिजीवी आखिर किस कारण से इतिहास के सबक को नहीं सिखाना चाहते ?
क्या बुद्धिजीवी होने का मतलब विदेशी सभ्यता असभ्यता को बिना जांचे परखे अपने देश के लोगो पर थोपना होता है ? यदि कोई विदेशी सभ्यता हमारे देश में पूरी तरह से विफल सिद्ध हो चुकी है तो आखिर क्या कारण है जो हमारे ये तथाकथित बुद्धिजीवी उसकी असफलता को स्वीकारने में हिचकिचा रहे है?
क्या सहिष्णुता का मतलब दूसरो की गन्दगी को स्वयं गर्व से ढ़ोना होता है ?
यदि हम वैश्विक दर्शन और सभ्यता की बात करे तो हम ये पाते है की अलग अलग देशो में समय के साथ अलग अलग सभ्यताओं का स्वयमेव विकास हुआ है अर्थात सभ्यताए वैश्विक नहीं होती है वो स्थान के द्वारा भी निर्धारित होती है वरना पुरे विश्व में एक साथ एक ही तरह की सभ्यता राज करती होती.
तो फिर ज़बरदस्ती दुसरे स्थान की सभ्यता को भारत भूमि में ढ़ोने की क्या आवश्यकता है?
क्या मलेरिया की बिमारी में जबरदस्ती टायफाइड की दवा इसलिए दे दे क्योकि टायफाईड की दवा जानने वाला वैद्य खुश हो जायेगा ? क्या इस तरह से ये तथाकथित बुद्धिजीवी भारत का विकास करना चाहते है?
कश्मीर का एशिया के लिए सामरिक महत्व का मुद्दा भी बहुत ही स्पष्ट है जो की सेक्युलर बुद्धिजीविओ द्वारा प्रायः छुपा ही लिया जाता है.कश्मीर की सीमाए भारत पाकिस्तान , चीन , अफगानिस्तान सबको जोड़ती है.
अमेरिका के ही सहयोग से चलने वाले परन्तु बाहरी रूप से दिखावे हेतु अमेरिका का विरोध करने वाले एनजीओ छाप सेक्युलर नेता/ बुद्धिजीवी/सामाजिक कार्यकर्त्ता /मानवाधिकारी जब कश्मीर के आजादी की बात करते है तो आखिर क्यों वो कश्मीर के उस सामरिक महत्व को बताना/समझाना भूल जाते है जो की प्रत्येक राष्ट्रभक्त (बुद्धिजीवियों के अनुसार कट्टर मूर्ख?) को स्पष्ट दिख रहा जिसके अनुसार अमेरिका एशिया के दोनों महाशक्तियो को अपने डंडे से हाकने के लिए कश्मीर जैसे मुफीद जगह का इंतजाम सोच रहा है जिससे वो भारत और चीन दोनों पर नियंत्रण हासिल करना चाहेगा. वह पहले से ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान पर नियंत्रण स्थापित कर भी चूका है खैर यह तो कुछ लोगो को केवल झूठी आशंका लग सकती है पर एक बात जो की स्पष्टरूप से दिखाई दे रही है वो यह है की इन सेक्युलरो के पुराने माई बाप चीन ने अपने हज़ारो सैनिक पाकिस्तान को विश्वास में लेकर (या धमका कर /रूपया खिलाकर ) पाक अधिकृत कश्मीर में जमा दिया है और उन सैनिको की करतूते जब तब सुनाने को मिलती ही रहती है. तो क्या यह तथाकथित बुद्धिजीवी यह गारंटी लेने को तैयार है की यदि कश्मीर को आज़ाद किया गया तो जल्द ही उस पर चीन , अमेरिका और पाकिस्तान में से कोई एक कब्जा नहीं कर लेगा ?
आखिर क्या कारण है की जो पाकिस्तान अपने नागरिको का पेट भरने में पसीने पसीने हो जा रहा है वो कश्मीर के युवाओं ही नहीं औरतो तक को भारतीय सैनिको को पत्थर मारने के लिए रोजाना प्रति व्यक्ति सौ दो सौ रुपये देने को तैयार हो जा रहा है. आखिर इस पैसे की फंडिंग कौन कर रहा है क्योकि पाकिस्तान की इतनी औकात बची नहीं है की वो इतना रूपया भारत के लिए खर्च कर पाए?
कश्मीर को आज़ाद करने का एक मात्र अर्थ है उसे एक अनंत और अथाह कष्ट वाले गुलामी में भेजना , कश्मीर का गुलाम होना भारत के नयी गुलामी का आधार होगा.
कश्मीर के लोगो को आजादी अवश्य मिलनी चाहिए पर पहले वो यह बताये की वह इस समय गुलाम किसके है? यदि वो अलग से मिले स्वायत्तता के बाद भी गुलामी महसूस करते है तो बाकी भारत के अन्य प्रदेश तो उनसे बड़े गुलाम है अतः कश्मीर से पहले तो बाकी अन्य प्रदेशो को आजादी मिलनी चाहिए और इस आजादी के क्रम में कश्मीर का स्थान आखिरी होना चाहिए.
कश्मीर के लोग यदि भारत के बजट का सबसे बड़ा हिस्सा लेकर भी खुद को गरीब महसूस करते है तो बाकी भारत को तो उससे गया गुजरा ही समझाना पड़ेगा.
यदि कश्मीर के लोग अरब सभ्यता को लेकर आज़ाद होना चाहते है तो उन्हें पहले ही पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशो का हश्र देख लेना चाहिए.
और यदि बुद्धजीवी होने का मतलब दूसरो की गन्दगी को आँख मूंद कर अपनाना है तो ऐसे मूर्ख बुद्धिजीवियों को राय रखने का कोई अधिकार भी नहीं है.
और यदि ये बुद्धिजीवी मूर्ख नहीं है तो निश्चित ही ये अत्यधिक कपटी और चालाक व्यक्ति है जो की या तो चीन या फिर अमेरिका के हितो के लिए काम कर रहे है.
भारत भूमि के विकास का आधार मात्र और मात्र महान भारतीय संस्कृति और सभ्यता है, चाहे हम उसे गर्व से माने या फिर शर्म से पर सत्य की आयु अनंत होती है और बार इतिहास उसे सिद्ध भी करता रहता है.
अंत में कश्मीर में सी आर पी ऍफ़ के उन सभी पांच जवानो को श्रद्धांजलि जिनकी हत्या इन निकृष्ट बुद्धिजीविओ के प्यारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने कर दी.
डॉ भूपेंद्र
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