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२०१४ के नए राजनैतिक समीकरण

ghumantu
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२०१४ में होने वाले लोकसभा चुनाव में अभी वक़्त है पर तैयारी अभी से शुरू हो गयी है. एक तरफ कांग्रेस ने अपने युवराज़ राहुल गांधी को पार्टी के अन्दर दूसरा सबसे बड़ा पद दे कर इशारा कर दिया है की वही उसके प्रधानमंत्री के अगले उम्मीदवार होंगे वही दूसरी तरफ राजनाथ सिंह द्वारा घोषित भाजपा के नयी राष्ट्रीय टीम में नरेन्द्र मोदी एवं उनके समर्थको की वापसी से भाजपा ने भी इशारों ही इशारों में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारी के करीब ला खडा कर दिया है.
rahul soniya
राहुल गांधी के राजनैतिक सफ़र को यदि देखा जाय तो सिवाय उत्तर प्रदेश में पिछले लोकसभा में कांग्रेस के वापसी के उन्हें अब तक कोई सफलता नहीं मिली, वो यदि नेहरू परिवार के न होते तो कब की कांग्रेस से उनकी बिदाई हो चुकी होती. लेकिन जैसे किसी पेड़ की जान उसके जड़ में होती है वैसे ही कांग्रेस की जान नेहरू परिवार में छिपी है इसलिए हर विफलता के बाद भी राहुल गांधी का पोषण करना कांग्रेस की मज़बूरी है. राहुल गांधी बार बार संगठन को कसने का जिम्मा उठाते है पर हर बार यह देखा गया है की वो उस काम को दो तीन महीने उत्साह से करते है पर फिर छोड़ देते है और इस तरह से बार बार के प्रयास के बावजूद भी कांग्रेस का संगठन न तो बन पा रहा है न तो सक्रीय हो पा रहा है.
मनमोहन सिंह के नेत्रित्व में चल रही सरकार देश को कैसे चला रही है वो या तो इश्वर ही जान रहे है या तो इस देश की गरीब जनता जान रही है , घपलो घोटालो का रिकॉर्ड कायम कर चुकी यह सरकार , प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद के इज्ज़त को भी तार तार कर चुकी है. महंगाई आसमान छु रही है , बेरोज़गारी तेज़ी से बढ़ रही है, आतंकवादी घटनाएं होना आम हो गया है. पाकिस्तान समेत अन्य देशो द्वारा बार बार सीमा पर एवं वैश्विक मंचो पर भारत को बेईज्ज़त किया जा रहा है, इटली के नौसैनिकों का मामला तो बिलकुल नया है , सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा फैसला न लिया होता तो भारत कही मुह दिखाने लायक भी नहीं बचता. अर्थात विदेश निति, गृह निति एवं सामरिक निति सभी मोर्चो पर सरकार पूर्णतया असफल साबित हो चुकी है. बंगलादेशियो द्वारा आसाम समेत पुरे भारत में मचाया गया उत्पात सबके आँखों के सामने घटा है. आतंकवादियों को तुष्टिकरण के नाम पर सालो साल जेल में मेहमानी कराना, उनको मौन समर्थन देना , अलगाववादियों से बिना शर्त बात करना, इस सरकार के आतंकवाद से लड़ने की इच्छा शक्ति का पर्दाफास करता है. घोटालो की भरमार यूँ है की आकाश से लेकर पातळ तक घोटाला हो रहा है , घोटाले का ऐसा दौर चला की सबसे श्रेष्ठ समझे जाने वाली भारतीय सेना भी नहीं बच पायी , इमानदार जनरल को हटाने के लिए सरकार ने नाक रगड़ डाले, अपनी लुटती इज्ज़त के कीमत पर भी जनरल की बिदाई कराई. कालेधन की वापसी के लिए आन्दोलन पर बैठे लोगो को कायरो की तरह हज़ारो की संख्या में पुलिस भेज कर मार मार कर भगा दिया , इतना हिम्मत कही काले धन वालो के खिलाफ सरकार ने दिखा दिया होता तो आज ये कोई मुद्दा ही नहीं होता. आन्दोलन के नेतृत्व करने वाले व्यक्ति के पीछे अपना सारा खुपिया तंत्र लगा दिया ताकि उसके सैकड़ो करोड़ के हिसाब में पचास साठ हज़ार की गड़बड़ी खोज ले. बेइमानो का सरदार बन बैठे मनमोहन सिंह अब भी इमानदारी का राग अलाप रहे है. और पूरे कांग्रेसी उनको इमानदारी की मूर्ति बना बैठे है. कोयला विभाग अपने पास रख कर लाखो करोड़ का घोटाला कर दिया फिर भी इमानदार के इमानदार ही रह गए है. पतन की पराकाष्ठा ये रही की सरकार में बैठे लोग अपना चरित्र भी नहीं बचा पाए , राष्ट्रीय प्रवक्ता से लेकर मंत्री तक स्कैंडल में पकडे गए , इस्तीफा भी दिया और मज़े की बात यह की फिर से वापसी भी हो गयी.
भ्रष्टाचार तो इस कदर फैला की एक अनाम से व्यक्ति ने ज़रा सी आवाज क्या लगाई की लोग उसके पीछे पागलो की तरह दौड़ पड़े , जनता सड़क पर आ गयी पर सरकार के बैठे लोगो को कोई फ़िक्र ही नहीं थी , मामले पर जानबूझ कर तब तक ध्यान नहीं दिया गया जब तक की वो डर नहीं गए फिर लोगो को शांत करने के लिए संसद में झूठा वचन दे दिया और फिर अगले ही सत्र में मुकर भी गए. जातिवाद को बढाने के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगो को जबरदस्ती बिना मांगे प्रोन्नति में रिजर्वेशन देने लगे. मारे गए आतंकवादियों के घर वालो से मिलने के लिए कांग्रेसी नेता दौरे पर दौरे करने लगे और शहीदों को याद करना भी मुनासिब नहीं समझा, एक आतंकवादी विदेश में पकड़ा गया तो हमारे प्रधानमंत्री को रात भर नींद नहीं आई तो वही बटला हाउस इनकाउंटर में मारे गए आतंकवादियों को देख कर सोनिया गांधी के आँखों में आशु आ गए. विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेसी नेताओं ने इस कदर बोल बोलना शुरू किया की चुनाव आयोग को भी नहीं छोडा, बेनी बाबू ने तो चुनाव आयोग तक को भी हड़का दिया. कभी सी.वी.सी. में बेइमानो को ठुसने की कोशिश की गयी तो कभी कैग को औकात दिखाने की कोशिश की गयी. लोकलेखा समिति को मज़ाक बना दिया गया. जेपीसी को भी महत्वहीन कर दिया गया.सी बी आई को तो कांग्रेस का कुत्ता बना दिया गया जिस सहयोगी ने उसके गलत सही कार्यो में आँख मूद कर सहयोग नहीं किया उसके पीछे यह पालतू कुत्ता कांग्रेस छोड़ देती है, चाहे माया हो या मुलायम , लालू हो या करूणानिधि सबको इसी के डर से हाका जा रहा है. स्टालिन का मामला ताज़ा है.
soniya manmohan
कुल मिलाकर कांग्रेस नीत यह सरकार हर तरह से असफल साबित हुई , यह न केवल असफल साबित हुई बल्कि इसने अच्छे अच्छे पदों को भी गरिमविहिन कर दिया, संवैधानिक संस्थाओं का मज़ाक बनाकर रख दिया, देश के युवाशक्ति को बेरोज़गारी और महंगाई के धुए में घुट घुट कर जीने के लिए छोड़ दिया गया है. आतंकवादियों का तुष्टिकरण किया गया. मूल निवासियों की भावनाओं को कुचलने का प्रयास किया गया. बेइमानो को बचाया गया और उनको ही आगे बढ़ाया गया
इस सरकार के खिलाफ लोगो के मन में घृणा का भाव भर गया है और आम से लेकर खास , अनपढ़ से लेकर पढ़े लिखे व्यक्ति भी इस सरकार के विरोध में खड़े है .अब हम पुनः मूल विषय राहुल गांधी पर लौटते है , राहुल गांधी यह सब अच्छे से जानते है और उनका परिवार भी इन सब मामलो में लिप्त पाया गया है, सोनिया गांधी पर जहां डॉ सुब्रमण्यम स्वामी बहुत दिनों से खुल कर आरोप लगा रहे है वही राबर्ट वाड्रा का नाम घोटाले में खुल कर आ गया. इसलिए राहुल गांधी अगले चुनाव से बहुत ज्यादा आश्वस्त दिखाई नहीं दे रहे है. इस बात की पुष्टि उनके उस बयान से होती है जिसमे उन्होंने कहा की वो प्रधानमंत्री बनने के इच्छुक नहीं है और वो कोई पद भी वो नहीं पाना नहीं चाहते है वही अभी कुछ ही दिन पहले मनमोहन सिंह ने भी साफ़ कर दिया की वो तीसरे कार्यकाल से मना नहीं कर रहे है. मनमोहन सिंह और राहुल गांधी के दोनों बातो को जोड़ कर यदि अर्थ निकाला जाय तो जो बात स्पष्ट रूप निकल कर सामने आ रही है वो यह है की कांग्रेस को भी यह पता चल गया है की वह सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है लेकिन यदि प्रादेशिक दल अच्छी खासी संख्या में सीट पा जाते है और भाजपा को आशातीत सफलता नहीं मिलती तो खुलेआम लूट का आफर देकर मनमोहन सिंह फिर से सरकार बना सकते है, हालाकि ऐसा कतई संभव नहीं है की भाजपा की सीटे इस बार कांग्रेस से कम आने वाली है लेकिन कांग्रेस को साम दाम दंड भेद सारी नीतिया लगाकर सरकार बनाने आता है, उसे सरकार बनाने की कला खून में मिली हुई है. कांग्रेस और भाजपा की सीट में यदि ५०-६० का भी अंतर होगा तो अपने खरीद फरोख्त की निति के दम पर कांग्रेस ही सरकार बनाने में सफल होगी. ऐसी स्थिति में एक बार फिर से लूट और भ्रष्टाचार का नंगा नाच होगा. इसलिए कांग्रेस और स्वयं राहुल गांधी ऐसी सरकार का न्रेत्रित्व करके बदनाम नहीं होना चाहेंगे, जैसे सोनिया गांधी भ्रष्टाचार से डूबे इस सरकार को अपने रिमोट कंट्रोल से चलाने के बावजूद साफ़ सुथरी छवि बनाए हुयें है शायद कुछ वैसा ही रास्ता राहुल गाँधी भी अख्तियार करेंगे.
जहा तक मेरा आकलन है की यदि यही हाल रहा तो कांग्रेस की राष्ट्रीय परिदृश्य में राजनैतिक मृत्यु इस बार हो सकती है और वह ६०-७० सीटो पर सिमट कर रह जायेगी. लेकिन यदि कोई चीज जो इस समय मरणासन्न हो चुके कांग्रेस में जान फुक सकता है तो वो है भाजपा के सबसे दमदार नेता ‘नरेन्द्र मोदी’..
कांग्रेस ये बात अच्छे से समझती है क्योकि अब यदि कांग्रेस की डूबती नैया का खेवनहार बन सकता है तो वो है मुस्लिम वोटर जो की राजनैतिक रूप से बेहद संजीदा होते है. उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटर समाजवादी पार्टी के साथ है , बिहार में वो नितीश कुमार के साथ है , बंगाल में वो ममता बनर्जी के साथ है , तमिलनाडु में जयललिता के साथ है. लेकिन यदि भाजपा की तरफ से मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित कर दिए जाते है तो कांग्रेस इन वोटरों के लिए स्वयं को उनका मसीहा घोषित कर देगी और ज्यादातर मुस्लिम वोटर किसी भी कीमत पर मोदी को अगला प्रधानमंत्री नहीं देखना चाहते. यानी की
” मोदी का असर बेहद चमत्कारी है वह जितना लाभदायक भाजपा के लिए है उतना ही लाभदायक कांग्रेस के लिए भी साबित हो रहे है”
मोदी के आने के कारण भाजपा की तरफ हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण होगा और कांग्रेस की तरफ मुस्लिम मतों का. ..घाटा केवल और केवल प्रादेशिक पार्टियों को हो रहा है. इसीलिए मुलायम सिंह हो या नितीश कुमार सभी मोदी के अलावा किसी को भी प्रधानमंत्री देखना स्वीकार कर ले रहे है, मुलायम सिंह तो भाजपा के अन्दर चल रहे अंतर्कलह का फायदा उठाने के लिए बाकायदा अपने कट्टर धुर विरोधी लाल कृष्ण आडवानी की भी तारीफ़ कर रहे है. वही नितीश कुमार तो भाजपा में मोदी के अलावा किसी को भी स्वीकारने को तैयार है.

modi advani
यदि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हो जाते है तो मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण से कांग्रेस की सीटो की संख्या ११०-१२० तक पहुच सकती है. और यदि कांग्रेस १०० से ऊपर पहुचती है तो वह नैतिक अनैतिक किसी भी तरीके से सरकार बनाने की कोशिश अवश्य करेगी. और कांग्रेस में लाख कमी हो पर सेक्युलरिज्म को बचाने के नाम पर माया, मुलायम , ममता, कम्युनिस्ट , डी एम् के , एन सी पी आदि तमाम पार्टिया उसके साथ चिपक जायेंगी.
ये तो बात हुई कांग्रेस की , अब हम चर्चा करते है भाजपा की..
भाजपा की इस समय जो स्थिति है उसे देखते हुए ये लग रहा है की यदि नरेन्द्र मोदी पर अनिर्णय की स्थिति बनी रही तो भाजपा १५५-१६० सीटो पर पहुच पाएगी लेकिन यदि नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाय तो यदि कोई चमत्कार न हुआ तो भाजपा १९०-२०० सीट पा जायेगी. और नरेन्द्र मोदी जिस तरह के व्यक्तित्व है और जिस तरह की उनकी छवि है उसे देखते हुए शिवसेना, शिरोमणि अकाली दल, जयललिता और कुछ छोटेमोटे दल ही उनका साथ देंगे और जिस तरह की परिस्थिति बनी हुई है उसे देखते हुए ये दल कुल मिला कर ४०-४५ सीट पायेंगे, ऐसा नहीं है की और दल मोदी को समर्थन देने के लिए नहीं आयेंगे लेकिन वो दल यदि मोदी को समर्थन करेंगे तो तमाम तरह की अड़चन डालेंगे यानी की मोदी जी प्रधानमंत्री तो बन जायेंगे पर उनकी पहचान , उनका मोदीत्व चला जाएगा. और मोदी को अपना मोदीत्व जाना किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं है. इस तरह मोदी को मोदीत्व के साथ काम करने देने वाले सांसदों का कुल संख्याबल लगभग २४० के आसपास पहुच रहा है. अब भी सरकार बनाने के लिए कम से कम ३०-४० सीटो की आवश्यकता है. और एक स्थिर सरकार के लिए २९०-३०० तक का आकडा पाना जरुरी है. नहीं तो भाजपा और कांग्रेस के बीच का जो अंतर है वो ख़तम हो जाएगा और वही सौदेबाजी फिर से शुरू हो जाएगी.
इस बीच भाजपा के सबसे पुराने और अनुभवी नेता लाल कृष्ण आडवाणी भी खेल में बने हुए है क्योकि उन्होंने जिस पार्टी को अपने पसीने से खडा किया है उन्हें यह बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है की कोई अन्य व्यक्ति जो की उनका खुद का शिष्य रहा हो उनके सामने प्रधानमंत्री बन जाय और वो हाथ मलते हुए रह जाय. इसलिए उनकी दबी हुई इच्छाए बार बार निकल जाती है और इस चक्कर में जब तब अजीब अजीब बयान दे भी देते है. लाल कृष्ण आडवानी की दो मुख्य इच्छाए है.पहला यह है की वह कम से कम एक बार प्रधानमंत्री बन जाए और दूसरी इच्छा यह की उनकी हिन्दू ह्रदय सम्राट वाली खो चुकी छवि फिर से वापस आ जाए.
लेकिन अभी उनकी छवि एक सेक्युलर नेता की बन गयी है क्योकि जिन्ना की मज़ार पर चादर चढ़ाकर उन्होंने सब कुछ केवल गवाया ही नहीं है बल्कि उनकी छवि एक ऐसे नेता की बन गयी की वो अन्य तथाकथित सेक्युलर दलों के लिए भी एक सर्वमान्य नेता बन गए. इसलिए यदि भाजपा को अपने पुराने विश्वस्त पार्टियों के सहयोग के बावजूद बहुमत नहीं मिला तो उस परिस्थिति में लाल कृष्ण आडवानी पूरा फायदा उठाने की कोशिश करेंगे, इस क्रम में में मोदी की धूर विरोधी पार्टियां भी जैसे की जनता दल यूनाइटेड ,ममता बनर्जी आदि भी सरकार बनाने में सहयोग कर देंगे
और इस प्रकार उनका प्रधान मंत्री बनाने का पहला स्वप्न पूरा हो जाएगा. उसके बाद उनके पास एक मात्र काम जो बचेगा वह यह होगा की किस तरह वो हिन्दू ह्रदय सम्राट वाली छवि वापस प्राप्त कर ले. इस क्रम में वह अपने आपको हिन्दू ह्रदय सम्राट फिर से बनाने के लिए एक दो वर्ष बाद कोई न कोई कट्टर हिंदुत्व का मुद्दा उठाकर वो उसेको संसद में रखेंगे. जैसे की राम मंदिर निर्माण के लिए कानून पास करने के लिए संसद में विधेयक लायेंगे और उस परिस्थिति में सारी सेक्युलर पार्टिया भाग खड़ी होंगी और सरकार गिर जायेगी. इस परिस्थति में आडवानी फिर से हिन्दू ह्रदय सम्राट बन जायेंगे और उनके प्रधानमंत्री बनाने का सपना भी पूरा हो जाएगा.
और हिन्दू वोटर जो भाजपा पर विश्वास करना बंद कर चुके है की भाजपा के नेता कभी अपने कीमत पर हिंदुत्व का पोषण नहीं कर सकते यह दाग भी धुल जाएगा. उस परिस्थिति में देश में भाजपा और हिंदुत्व की लहर होगी.
भाजपा का अंतर्कलह भी काफी हद तक ख़तम हो जाएगा , लाल कृष्ण आडवानी खुद नरेन्द्र मोदी का समर्थन करके उनकी दावेदारी को निर्विवाद बना देंगे.
इसलिए इस समय की परिस्थिति को देखकर लाल कृष्ण आडवानी की संभावना सबसे ज्यादा है और मोदी जी का समय २०१६-२०१७ है. लेकिन फिर भी यह देश तो मोदी को ही चाहती है , इसलिए यदि भारत की जनता जाग जाएगी तो चमत्कार भी हो सकता है और हो सकता है की मोदी के लिए इस राष्ट्र को और दो साल इंतज़ार करने की जरुरत नहीं पड़ेगी.
लोकतंत्र में अंत में जनता की ही जय होती है , बाकी लोग केवल अटकल ही लगा सकते है.
डॉ भूपेंद्र

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