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देश को जब आजादी मिली तो प्रधानमंत्री के रूप में आम लोगो और स्वयं कांग्रेस के इच्छा के खिलाफ गांधी जी की मनमानी से जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बन गए. प्रधानमंत्री पद के लिए दो उम्मीदवारों का नाम था पहला सरदार पटेल और और दूसरा जवाहर लाल नेहरू. कांग्रेस की केन्द्रीय कमेटी के सदस्यों ने मतदान किया जिसमे से १५ में से १४ वोट सरदार पटेल को मिला था. और एक वोट नेहरू को मिला लेकिन नेहरू ने फिर भी पूरी निर्लज्ज़ता से यह पद ग्रहण कर लिया. भारत के गवर्नर जनरल के रूप में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी पदासीन हुए जिन्हें ‘राजा जी’ के नाम से भी जाना जाता है.
भारत का संविधान लिखा जाना शुरू हुआ, तो यह तय था की गवर्नर जनरल का पद ख़तम हो जाएगा इसलिए नेहरू ने कांग्रेस के अन्दर लाबिंग शुरू कर दी की राजा जी को ही आगे चल कर राष्ट्रपति बनाया इसका कारण यह था की नेहरु और राजा जी दोनों पश्चिमी विचारों से प्रभावित थे और शहरी विकास मॉडल के समर्थक थे. लेकिन जब यह बात सरदार पटेल को पता चली तो उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद का समर्थन करके कांग्रेस के अन्दर माहौल बना दिया. जब नेहरु जान गए की चुनाव में उनके प्रत्याशी को शिकस्त मिलेगी तो उन्होंने दूसरा खेल शुरू कर दिया उन्होंने सीधे राजेन्द्र प्रसाद को चिट्ठी लिखी जिसमे उन्होंने कहा की यदि राष्ट्रपति के चुनाव में आप खड़े होंगे और कही राजा जी हार गए तो उनका बड़ा अपमान होगा और चुकी वही व्यवस्था चलानी है तो आदमी बदलने की क्या जरुरत है ??
इसके जबाब में राजेंद्र प्रसाद ने लिखा की चुनाव हारने जितने से किसी का मान अपमान नहीं होता और चुकी जब पूरा संविधान ही बदला जा रहा है तो यह कहना गलत होगा की वही व्यवस्था चलनी है, चुकी व्यवस्था बदल रही है इसलिए व्यक्ति बदलने कोई बुराई नहीं है.
अंत में नेहरु को अपनी यह हार स्वीकारनी पड़ी और सबसे मजेदार बात यह रही की राजेंद्र प्रसाद ने जैसे ही पद प्राप्त किया राजा जी ने बाकायदा चिट्ठी लिखकर उन्हें बधाई दी और हर तरह के सहयोग देने का आश्वासन दिया.
नेहरु और राजेंद्र प्रसाद के बीच बड़ा भारी अंतर था नेहरू पश्चिमी सभ्यता के अनुयायी और प्रशंसक जबकि राजेंद्र प्रसाद भारतीय सभ्यता को मानते थे , खाली वक़्त में जहा राजेंद्र प्रसाद गाओं में घुमाने जाते थे वही पंडित नेहरु लन्दन और पेरिस में चले जाते थे. सरदार पटेल भी भारतीय सभ्यता के पूर्णतया पक्षधर थे. इस कारण पटेल और राजेंद्र प्रसाद में खूब बनती थी. नेहरु मुस्लिम तुष्टिकरण को सेक्युलरटी समझते थे जबकि राजेंद्र प्रसाद इसके विरोधी थे , वन्दे मातरम मुद्दे पर जहा सारे सेक्युलर क्रांतिकारियों का अपमान कर वन्दे मातरम के विरोध में खड़े हो गए वही राजेंद्र प्रसाद २४ जनुअरी १९५० को इसे राष्ट्रीय गीत का दर्ज़ा दे दिए.
सोमनाथ मंदिर मुद्दे पर राजेंद्र प्रसाद और सरदार पटेल ने एक जुट होकर कहा की यह भारतीय अस्मिता का केंद्र है इसका निर्माण होना ही चाहिए पर जवाहर लाल नेहरु ने गुजरात के मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख दी की सोमनाथ मंदिर के निर्माण से भारत की सेकुलरटी खतरे में पड़ जायेगी जब की सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए कहा की न केवल सोमनाथ बल्कि वो हर महत्वपूर्ण जगह जिससे बहुसंख्यक समाज की भावनाए बहुत ज्यादा आहत है उसे ठीक किया जाय लेकिन नेहरु के विरोध में केवल सोमनाथ का ही पुनर्निर्माण हो सका. बाद में जब बाबरी मस्जिद के वजह से तमाम आन्दोलन दंगे हुए तब लोगो को दोनों लोगो की दूरदर्शिता का पता चला.
जब सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ तो उद्दघाटन के मौके पर सभी लोग पहुचे पर मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए नेहरु जान बुझ कर वहा नहीं गए. सोमनाथ मंदिर का निर्माण नेहरू को अपमान सा लगा पर वह कुछ कर नहीं कर पाए.
बाद में जब हिन्दुओं के क़ानून को बदलने के लिए हिन्दू कोड बिल लाया गया तो उस क़ानून के पक्ष में तत्कालीन क़ानून मंत्री भीम राव आंबेडकर और जवाहर लाल नेहरु थे जबकि राजेंद्र प्रसाद इसके विरोधी थे वो यह मानते थे की यदि एक बार हिन्दुओ के क़ानून में सरकार ने हाथ डाल दिया तो इस बहाने वह बार बार ऐसा करती रहेगी और उनका यह सोचना कितना दूरदर्शिता भरा था अभी कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने टिपण्णी की है की हमेशा हिन्दुओं का ही कानून क्यों बदल जाता है ?? बाकी किसी पंथ का क्यों नहीं ?? मामले को तूल तब मिल गया जब इस मुद्दे पर नाराज़ होकर भीम राव इस्तीफा तक दे आये.
लेकिन अंत में जवाहर लाल नेहरू इस क़ानून को बदलने में सफल रहे और संवैधानिक शक्ति के अभाव में राजेंद्र बाबू कुछ नहीं कर पाए और इस बात को नेहरु जी ने अपनी जीत की तरह लिया और राजेंद्र बाबू को अपमानित करने के लिए अपने एक इंटरव्यू में नेहरु ने इस बिल के निर्माण को अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया.
राजेंद्र प्रसाद जब राष्ट्रपति चुने गए तो वो अपने शपथ ग्रहण समारोह को हिन्दू रीतिरिवाज से संपन्न करना चाहा पर पर अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम नेहरु जी ने खुला विरोध जताया और उनके अनुसार सेक्युलरटी फिर से खतरे में पड़ने लगी थी सो उन्हें अंग्रेजी तरीके से ही पूरा कार्यक्रम करने को मजबूर किया. नेहरू जी राजेंद्र बाबु के इन सब कामो को हेय मानते थे और ज्योतिष पर राजेंद्र बाबु के विश्वास से भी उन्हें समस्या थी.
इसी तरह एक बार जब राजेंद्र बाबु बनारस यात्रा के दौरान खुले आम पुजारियों के पैर छु लिए तो नेहरू नाराज़ हो गए और सार्वजनिक रूप से इसके लिए विरोध जताया. और कहा की भारत के राष्ट्रपति को ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए.
राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू जी को एक चिट्ठी लिखी जिसमे उन्होंने एक आई ए एस के बारे में नेहरू जी को बताया और कहा की वह व्यक्ति नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के साथ काम कर चूका है और जब पूर्वोत्तर भारत में नेता जी ने अपनी सरकार बनायी तो उसने बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया है और उसे विदेश सम्बंधित नीतियों का बहुत ज्ञान है अतः उसे क्यों न विदेश सेवा में रखा जाय इस पात्र के उत्तर में नेहरू ने ऐसा उत्तर लिखा मानो उसे विदेश सेवा में लेने के लिए इन्हें देश का संविधान बदलना पड़ेगा और बड़े बेमन से उत्तर भेजा.
जब तक सरदार पटेल जीवित रहे तब तक राजेंद्र प्रसाद अपने मन से कार्य करते रहे पर दुर्भाग्य से सरदार पटेल बहुत अल्प समय तक ही जीवित रहे बाद में संवैधानिक शक्तियों के अभाव में राजेंद्र प्रसाद नेहरू के गलत और अदूरदर्शी निति में ज्यादा हस्त्क्क्षेप नहीं कर पाए. और नेहरू लगातार सार्वजनिक रूप से राजेंद्र प्रसाद का विरोध करते रहे.
वास्तव में राजेंद्र प्रसाद एक दूरदर्शी नेता थे वो भारतीय संस्कृति सभ्यता के समर्थक थे , राष्ट्रीय अस्मिता को बचाकर रखने वालो में से थे , झूठी सेक्युलरटी के आडम्बर के लिए हिन्दू हितो का त्याग नहीं किया. मुस्लिम तुष्टिकरण के सर्वथा विरोधी थे.
जबकि नेहरू सत्तालोलुप , चालाक , पश्चिमी सभ्यता के सभ्यता के समर्थक , भारतीयता के विरोधी , चाटुकारप्रेमी और निहायत ही अदूरदर्शी थे.
डॉ भूपेन्द्र
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