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माओवादी ! वैचारिक क्रन्तिकारी या संगठित गुंडे?

ghumantu
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आज बिहार में नक्सलवादियों द्वारा पसेंजर ट्रेन के जिन यात्रियों को मारा गया वो कौन है क्या वो इस देश के गरीब और असहाय जनता नहीं हैं??? क्या वो भी तथाकथित पूंजीवादी है?? ये नक्सलवादी किस बात की लड़ाई कर रहे है?? किससे कर रहे है?? क्यों कर रहे है??
गरीबो की बात करते है और गरीबो का ही सीना अपने गोलियों से छलनी करते है.. ये कौन सा विचारधारा है ये कौन सा राश्ता है. ये बुद्धजीवियो द्वरा घोषित अपने ही देश के अभावग्रस्त नागरिक है या अपने देश के लूटेरे डकैत और बदमाश है ? जो पहले विकास न होने का रोना रोकर लोगो को सरकार से भड़काते है और बाद में विकास करने ही नहीं देते , और कुछ हो भी जाता है तो उसे बर्बाद कर देते है. जो विचारधारा पूरी दुनिया में शत शत बार फेल हो चुकी है उसके पीछे क्यों इतनी बेकरारी?? जिस माओ का नाम लेकर आन्दोलन करते है उसे आज उसके देश में ही पूछने वाले नहीं.
और जो इनको समर्थन करे वो बुद्धजीवी जो इनका विरोध करे मानव स्वतंत्रताविरोधी.. इन्हें किस चीज की आजादी चाहिए??
लोगो की हत्या करने की ??
लोकतंत्र को मिटाकर तानाशाही सत्ता स्थापित करने की ??
विकास को रौदने की??
अपने परम्पराओं , मूल्यों , राष्ट्रीयता सभ्यता, को गाली देने की ??
ये आम जनता की लड़ाई लड़ रहे है या देश में आतंकवाद फैला रहे है , करोडो का हथियार खरीदने के लिए पैसा है पर उस करोड़ रुपये से १० गाव का विकास करने के लिए पैसा नहीं है .. ये गरीबो की हैं या राष्ट्र के सत्ता को अपहरण करने के लिए संगठित गुंडों द्वारा किया जाने वाला युद्ध??
गरीब किसानो से, मजदूरों से लेवी वसूलते है , उनकी बेटियों से बलात्कार करते है.. जबरदस्ती घरो में घुश्कर खाना खाते है और नहीं कुछ बचता तो अपने महिला कैडर के लडकियों से बलात्कार करते है. बच्चा ठहर जाने की स्थिति में गर्भपात करते है, मुह खोलने पर मारते पिटते है, सुन्दर लडकियों को ऊपर के कैडर को सप्लाई किया जाता है.ये है इनका आदर्शवाद , ये है विचारधारा.
१५-१६ साल के आयुवे के बच्चो को अपनी टीम में शामिल करते है फिर उनका नसबंदी करा देते है ताकि वो वापस भी न जा पाए ( भला हो सरकार का जो अपने ही इन दुश्मनों का रीकैनालाज़ेसन सर्जरी करावा कर इन्हें शादी योग्य बनाया)
सारी मानवता, मानवाधिकार, करुना , प्रेम दया ,क्षमा न्याय सब इनके लिए जिन गरीबो को मारते है , जिन समूह ग के कर्मचारियों (पुलिस वालो को ) को मारते है न तो उनका कोई मानवाधिकार है और न ही उनके लिए कोई दया है.
जिनको मार दिया जाता है उसके लिए कोई तथाकथित बुद्धिजीवी मुह नहीं खोलता, उनकी बुद्धि तब घास चरने चली जाती है,
और एक है हमारी महान सरकार जो एक तरफ सीआरपीऍफ़ के जवानो की नियुक्ति कराती है इनसे निपटने के लिए , उनको नया नया हथियार देती है , जंगलो में कैम्प लगवाती है वही दूसरी तरफ इन नक्सलवादियों के समर्थक नेताओं को अपने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् में जगह देती है , कभी हर्ष मंदर के रूप में तो कभी विनायक सेन के रूप में तो कभी अरुणा राय के रूप में … इनमे कोई छुपकर समर्थन करने वाला है तो कोई खुलकर ,सभी शिक्षा संस्थाओं में कम्यूनिस्टो को बुद्धिजीवी घोषित कर ठूस दिया जाता है, उनको सामान्य जानकारी वाला व्यक्ति भी बुद्धिमान मानने लगता है , वो जो चाहते है सरकार से वैसी योजनाये बनवा लेते है , जैसा चाहते वैसा समाज में सन्देश दे डालते है. अपने करतूतों को कुतर्क से ढक देते है , पर यह सब करने का मौका यह सरकार ही तो दे रही है.
सी आर पी ऍफ़ के जवान तुम संघर्ष करो , नक्सली नेताओ को हम सलाहकार बनायेंगे , यही चल रहा है मनमोहन के राज़ में नक्सलवाद से लड़ाई. इस तरह के लड़ाई से सिर्फ और सिर्फ सी आर पी ऍफ़ के जवान ही ख़तम होंगे , आम जनता ख़तम होगी पर, एक चीज जो कभी ख़तम नहीं होगी वह है नक्सलवाद.
नक्सलवाद के समर्थको को आज मीडिया भी बुद्धिजीवी का दर्ज़ा देती है क्योकि सब जगह ये भरे पड़े है ये बुद्धिजीवी नहीं , बौधिक आतंकवादी है.
इनकी सच्चाई जनता के सामने लाना ही होगा और साथ ,में मनमोहन जैसे निकम्मे लोगो की सच्चाई जनता को समझना/समझाना होगा जो हर बड़े मंच से नक्सलवाद को खतरा बताते है और फिर अपने हर कमेटी, बोर्ड, योजना विभाग में इन नक्सलवादियो को भर लेते हैं, इस तरह के दोगली, दब्बू , कायरताभरी निति से केवल आम जनता को हानि है.
जिनसे इन नक्सलवादियो की लड़ाई है (state से ) उनसे ये प्यार की पींगे बढाते है और जिसके लिए लड़ रहे है उनका सीना गोलियों से छलनी कर डालते है.
ये अधिकारों की लड़ाई करने वाले वैचारिक क्रांतिकारी नहीं सिर्फ और सिर्फ सत्ता को पाने के लिए युद्ध लड़ने वाले गुंडे है.
इनका समर्थन चाहे कोई भी, किसी रूप में करे वो न केवल आम जनता जा दुश्मन है बल्कि राष्ट्रद्रोही भी है. और भारतीयों को इन संगठित गुंडों की साज़िश समझ कर इनका खत्म शुरू कर देना चाहिए. क्योकि अब समय बहुत कम है .. अभी नहीं तो कभी नहीं .
डॉ भूपेंद्र

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